विलुप्ति की कगार पर पक्षियों की कई प्रजातियां
वर्ष 2000 से अब तक 52 प्रतिशत पक्षियों की संख्या घटी
विलुप्ति की कगार पर पक्षियों की कई प्रजातियां
गांधीनगर
देश में 52 प्रतिशत पक्षियों की संख्या लंबे समय से घट रही है, जिससे धीरे-धीरे उनके विलुप्त होने की आशंका पैदा हो गई है। प्रवासी जीवों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (सीएमएस) भारतीय पक्षियों पर एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है। अभी इसका प्रारूप जारी किया गया है।
867 तरह के भारतीय पक्षियों का अध्ययन किया गया है। इनमें 261 के बारे में लंबे समय तक आंकड़े एकत्र करना संभव हो सका है। इसमें पता चला है कि वर्ष 2000 से अब तक 52 प्रतिशत पक्षियों की संख्या घटी है। इस 52 प्रतिशत में भी 22 प्रतिशत की संख्या काफी तेजी से कम हो रही है। शेष 48 प्रतिशत में पांच प्रतिशत पक्षियों की संख्या बढ़ी है, जबकि 43 प्रतिशत की संख्या लगभग स्थिर है। राहत की बात यह है कि आम धारणा के विपरीत अध्ययन में यह पाया गया कि 25 साल से ज्यादा की अवधि में गौरैया की संख्या करीब-करीब स्थिर है। मोर की संख्या बढ़ रही है।
बढ़ रही है गिद्धों की संख्या
गिद्ध के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि उनकी संख्या पहले घट रही थी, लेकिन अब यह बढऩे लगी है। लंबी अवधि में जिन पक्षियों की संख्या सबसे तेजी से घट रही है, उनमें पीले पेट वाली कठफोड़वा, कॉमन वुडश्रीक, छोटे पंजों वाली स्नेक ईगल, कपास चैती, बड़ी कोयल, सामान्य ग्रीनशैंक आदि शामिल हैं। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के साथ ही तीन और तरह के बस्टर्ड भारत में पाए जाते हैं। ये हैं मैकक्वीन बस्टर्ड, लेसर फ्रोलिकन और बंगाल फ्रोलिकन। इन सभी की आबादी तेजी से घटी है।
खतरे में पक्षी
सीएमएस की कार्यकारी सचिव एमी फ्रेंकल ने बताया कि अभी यह प्रारूप रिपोर्ट है, जिसे अंतिम रूप दिया जाना शेष है। भारतीय पक्षियों की जिन 146 प्रजातियों के बारे में हालिया अध्ययन सामने आया है, उनमें 80 फीसदी की संख्या घटी है। पचास प्रतिशत की आबादी तेजी से घट रही है, जबकि 30 प्रतिशत की संख्या घटने की रफतार कुछ धीमी है। शेष में छह प्रतिशत की आबादी स्थिर है, जबकि 14 फीसदी की आबादी बढ़ रही है।
चिंताजनक श्रेणी
अध्ययन में छह पक्षियों को छोड़कर सभी के बारे में उनके आवास क्षेत्र के आंकड़े उपलब्ध हैं। इनमें 46 प्रतिशत 33 प्रतिशत प्रजातियों का रहवास क्षेत्र विस्तारित है, 46 प्रतिशत का ठीकठाक है, 21 प्रतिशत सीमित क्षेत्र में रह गए हैं। प्रारूप रिपोर्ट में 12 को बेहद असुरक्षित की श्रेणी में, 15 को असुरक्षित की श्रेणी में, 52 को संभावित खतरे वाली श्रेणी में, 52 को असुरक्षित की कगार पर और 731 को कम ङ्क्षचताजनक की श्रेणी में रखा गया है।