बाजार गुलजार, पतंगें आसमान में छाने को तैयार
हांडीपुरा सहित शहर के कई इलाकों में पतंग-डोर के बाजार सजे
सुबह से शाम तक बनी रहती है गहमा-गहमी

जयपुर. पतंगों का पर्व मकर संक्रांति सन्निकट है। महामारी की मंद पड़ती रफ्तार और कोरोना वैक्सीनेशन की सुगबुगाहट के बीच एक बड़ा पर्व आ रहा है। चारों ओर खुशियों का माहौल है और इसी के साथ पतंगबाजी परवान चढऩे लगी है। शहर में जगह-जगह पतंग-डोर के बाजार सज चुके हैं और बिक्री का ग्राफ बढऩे लगा है। पतंगों की मंडी कहे जाने वाले परकोटा स्थित हांडीपुरा में इन दिनों अलग ही रौनक है। यहां घर-घर पतंगों के निर्माण से लेकर दुकान-दुकान इनका बेचान हो रहा है। जयपुर की स्थानीय पतंगों के साथ-साथ बरेली-रामपुर की पतंगों से बाजार अट चुका है। सुबह से शाम तक खरीदारों की रौनक बनी रहती है। मझोले-अद्दे-डेढ़ कन्नी के साथ ही पुच्छल दारा पतंगों की खूब बिक्री की बात सामने आ रही है। विक्रेताओं के मुताबिक बच्चे कार्टून कैरेक्टर्स वाली पन्नी की पतंगों को तरजीह दे रहे हैं। वहीं मैदानी पेंच लड़ाने वाले बरेली की पतंगें मांग रहे हैं।
चायनीज मांझा पूरी तरह प्रतिबंधित
मांझे के नाम पर तीन या छह गट्टे की चरखी ज्यादा बिक रही है। हांडीपुरा में लगता है चायनीज मांझा पूरी तरह निषेध है। सुनते ही विक्रेता आंखें जैसे तरेर लेते हैं। सभी ने एक स्वर में कहा कि बाजार में स्थानीय कारीगरों के साथ-साथ बरेली के कारीगरों का ही मांझा बेचा जा रहा है।
खास-खास
-कीमतों में इस बार इजाफा बताया जा रहा है। पतंग-डोर दोनों ही पिछले साल के मुकाबले महंगे हो गए हैं। कीमतों में 20-25 फीसदी की बढ़ोतरी बताई जा रही है।
-पतंग-डोर के साथ विश लैंप्स भी खरीदे जा रहे हैं।
-सफेद के साथ-साथ रंगीन सद्दा खूब पसंद किया जा रहा है। साथ ही इस बार सतरंगी सद्दा बच्चों में खासी लोकप्रिय हो रही है।
-पन्नी की चमकीली पतंगें भी ग्राहकों को आकर्षित कर रही हैं।
-एकाध दुकानों पर कारीगरों की बनाई कटआउट पतंगें भी नजर आईं।
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