मैं न कोई रॉकस्टार और न ही बहुत पढ़ा लिखा अग्रवाल ने अपने ट्वीट के बारे में बताते हुए मीडिया से कहा है कि, मैं कोई स्टार नहीं हूं। मैं बहुत पढ़ा-लिखा नहीं हूं। मैं एक फिल्म अभिनेता नहीं हूं। लेकिन मुझे जो प्रतिक्रिया मिली है (मेरी यात्रा के बारे में ट्वीट के लिए), वह जबर्दस्त है। मेरे एक ट्वीट पर 20 लाख प्रतिक्रियाएं मिली हैं। मैं खुद हैरान हूं।
पटना मैं हुआ था अनिल अग्रवाल का जन्म वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल का जन्म 24 जनवरी, 1954 को पटना, बिहार में निम्न-मध्यम वर्गीय मारवाड़ी परिवार में हुआ था। उनके पिता द्वारका प्रसाद अग्रवाल का एल्युमीनियम कंडक्टर का छोटा सा कारोबार था। उन्होंने अपने पिता के कारोबार में मदद के लिए 15 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ दी और 19 साल की आयु में सिर्फ एक टिफिन बॉक्स, बिस्तर और सपने लेकर मुंबई चले गए। अग्रवाल ने कहा, जब मैं अपनी कहानी लिखता हूं, तो मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखता हूं कि कहीं मैं खुद को महिमामंडित तो नहीं कर रहा हूं। मैं केवल इतना कह रहा हूं कि कृपया विफलता से डरो मत। कभी छोटा मत सोचो या छोटे सपने मत देखो। अगर मैं यह कर सकता हूं, तो आप कर सकते हैं। आप मुझसे ज्यादा सक्षम हैं। यह मेरा संदेश है।
अब तक कई बड़े फिल्मी निर्माताओं ने किया है संपर्क जहां उनका सोशल मीडिया पोस्ट ‘हिट’ हो गया है, वहीं अग्रवाल कहते हैं कि प्रकाशक लगातार उनके लोगों से पुस्तक अधिकार के लिए संपर्क कर रहे हैं। फिल्मों के ऑफर भी उनके पास आए हैं। उन्होंने किसी का नाम लिए बिना कहा, कोई एक फिल्म कंपनी नहीं है जिसने संपर्क किया हो। सभी बड़े निर्माताओं ने संपर्क किया है। वे मुझे ‘बायोपिक’ के लिए पैसे देना चाहते हैं। अग्रवाल ने कहा कि अभी उन्होंने मन नहीं बनाया है। वह अपने सहयोगियों और पुत्री प्रिया से बात करने के बाद इस पर कोई फैसला करेंगे। उन्होंने मीडिया से कहा, मैं कोई रॉकस्टार नहीं हूं।
मैं पटना का रहने वाला, मुझे अपनी ‘जड़ों’ पर गर्व मैं पटना का रहने वाला हूं और मुझे अपनी ‘जड़ों’ पर गर्व है। मुझे कहा गया है कि मैं पटना से आता हूं, मुझे यह नहीं बताना चाहिए क्योंकि इससे मेरा नाम खराब होगा। मैंने उनसे कहा है कि मैं इसे रोकूंगा नहीं। मेरी शुरुआत वहीं से हुई है। उनका यह बयान उनकी बेबाक छवि से मेल खाता है। उन्होंने तीन दशक में जो हासिल किया है उसके पीछे वजह उनके द्वारा किए गए साहसिक सौदे हैं। अनिल अग्रवाल ने 1976 में तांबा कंपनी के रूप में स्टरलाइट इंडस्ट्रीज की स्थापना की थी। बाद में उन्होंने दूरसंचार कंपनियों के लिए तांबा केबल के क्षेत्र में भी उतरने का फैसला किया। वह 2001 में उस समय चर्चा में आए थे जब उनकी कंपनी ने सरकारी एल्युमीनियम कंपनी बाल्को का अधिग्रहण किया था। दो साल बाद वेदांता लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने वाली पहली भारतीय कंपनी बनी। कई सप्ताह तक चले ट्वीट की श्रृंखला में अग्रवाल ने अपनी शुरुआती यात्रा, अपने मुश्किल वर्ष, अपने संघर्ष और ‘डिप्रेशन’ का जिक्र किया है। उनकी पहली कंपनी ‘शमशेर स्टर्लिंग केबल कंपनी’ थी। आज वह दुनिया की बहुराष्ट्रीय खनन कंपनी के मालिक हैं। हालांकि, उनकी यह यात्रा आसान नहीं रही है।
अपने अवसाद के दिनों का भा किया जिक्र एक ट्वीट के बाद कई हफ्तों में किए गए इन ट्वीट्स में, उन्होंने अपनी महान महत्वाकांक्षा की शुरुआत, अपने जीवन के सबसे कठिन वर्षों, अवसाद के साथ अपने संघर्ष और उस समय के बारे में बात की जब उनकी किस्मत हमेशा के लिए बदल गई। अपनी पहली फर्म, ‘शमशेर स्टर्लिंग केबल कंपनी’ से लेकर एक बहुराष्ट्रीय खनन कंपनी के बनने तक, अनिल अग्रवाल के लिए यह यात्रा आसान कतई नहीं थी। अग्रवाल के अनुसार, मैंने अपनी पहली कंपनी बड़ी महत्वाकांक्षा के साथ खरीदी, लेकिन अगले 10 साल मेरे जीवन के सबसे कठिन वर्ष थे।
खुद को व्यायाम और ध्यान से संभाला अग्रवाल ने कहा कि1976 में, मैंने शमशेर स्टर्लिंग केबल कंपनी का अधिग्रहण किया, लेकिन मेरे पास अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने या आवश्यक कच्चा माल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। मैंने अपने भुगतानों को पूरा करने के लिए कई दिनों बैंकों का दौरा किया, और मेरी रातें बंद केबल प्लांट को पुनर्जीवित करने में बिताई। अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में नौ व्यवसाय शुरू किए: चुंबकीय तार, विभिन्न केबल, एल्यूमीनियम की छड़ें, वार्नर ब्रदर्स के साथ मल्टीप्लेक्स आदि….लेकिन वे सभी एक के बाद एक विफल रहे। फिर भी, मैंने कभी हार नहीं मानी। अग्रवाल के अनुसार, इन दिनों तीन साल तक वे अवसाद में चले गए और किसी को इसके बारे में पता नहीं चला। लेकिन मेरा संकल्प दृढ़ था। खुद को संभालने के लिए मैंने इस दौर में जितना हो सके उतना व्यायाम और ध्यान किया…हालांकि, आज अग्रवाल के लिए चीजें अलग हैं। वह कहते हैं, सफल होने के लिए, आपको पहले असफल होना सीखना होगा..।