अगहन यानि मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को अखंड द्वादशी या मत्स्य द्वादशी कहते हैं। सनातन धर्म के कई पौराणिक ग्रंथों में अखंड द्वादशी के बारे में विस्तार से उल्लेख करते हुए इसकी महत्ता भी बताई गई है। इन धार्मिक ग्रंथों में वराहपुराण भी शामिल है। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई के अनुसार वराहपुराण में कहा गया है कि मार्गशीर्ष माह की द्वादशी पर भगवान विष्णु को खिले हुए पुष्पों की वनमाला चढ़ाने का बहुत महत्व है। ऐसा करनेवालों को विष्णुजी की बारह वर्षों तक पूजा करने का फल मिलता है।
इस दिन विष्णुजी पर चन्दन अर्पित करने का भी विधान है। वराहपुराण में कार्तिक और बैशाख माह की द्वादशी तिथियों पर भी विष्णुजी की ऐसी पूजा करने का फलदायी बताया गया है। वराहपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास में भगवान विष्णु को चन्दन एवं कमल के पुष्प को एक साथ मिलाकर अर्पण करने का महान फल प्राप्त होता है।इधर अग्निपुराण में मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की द्वादशी को श्रीकृष्ण की पूजा का महत्व बताया गया है। अग्निपुराण के अनुसार का इस दिन विष्णु पूजन के बाद लवण का दान करने से सम्पूर्ण रसों के दान का फल प्राप्त होता है।
स्कन्दपुराण में मार्गशीर्ष मास में विशेषकर द्वादशी को विष्णुजी या उनके अन्य स्वरुप को स्नान कराने का महत्व बताया है। श्रीकृष्ण को इस दिन शंख के द्वारा दूध से स्नान कराना चाहिए। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार-
द्वादश्यां मार्गशीर्षे तु अहोरात्रेण केशवम्। अर्च्याश्वमेधं प्राप्नोति दुष्कृतं चास्य नश्यति।।
भावार्थ- श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो मार्गशीर्ष की द्वादशी को दिनरात उपवास कर केशव नाम से मेरी पूजा करता है उसे अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को प्रारम्भ कर हर माह की द्वादशी तिथि पर उपवास रखना चाहिए. ये उपवास कार्तिक की द्वादशी को पूरे करना चाहिए। हर द्वादशी को भगवान विष्णु के 12 नामों में से एक नाम की एक-एक माह पूजन करना चाहिए। इससे चमत्कारिक परिणाम प्राप्त होते हैं. उपासक को सभी सुख मिलते हैं, अथाह संपत्ति प्राप्त होती है. खास बात यह है कि इस पूजा के प्रभाव से उपासक जातिस्मर बन जाता है अर्थात उन्हें पूर्व जन्म की घटनाएं भी याद आने लगती है। ऐसे लोगों को मोक्ष मिल जाता है।