scriptएफपीआई बढ़ाना तो दूर…जो है उसे रोकना भी दूभर | Measures to increase FPI are ineffective | Patrika News

एफपीआई बढ़ाना तो दूर…जो है उसे रोकना भी दूभर

locationजयपुरPublished: Sep 06, 2019 08:54:16 pm

Submitted by:

rajendra sharma

मंदी ( Recession ) को बेअसर करने के लिए एफपीआई ( Foreign portfolio investors ) बढ़ाने को की कई कवायद खुद बेअसर साबित हो रही है। और तो और, बीते अगस्त महीने में विदेशी निवेशकों ( FPI ) ने उलटे करीब 6000 करोड़ रुपए भारतीय पूंजी बाजार ( Indian capital market ) से निकाल भी लिए।

एफपीआई बढ़ाना तो दूर...जो है उसे रोकना भी दूभर

एफपीआई बढ़ाना तो दूर…जो है उसे रोकना भी दूभर

राजेंद्र शर्मा। मंदी ( Recession ) से निपटने के लिए (हालांकि वित्त मंत्री मानती ही नहीं कि मंदी है) वित्त मंत्री ( Finance Minister ) निर्मला सीतारमण ( Nirmala Sitaraman ) ने बजट 2019 में लगाए गए सरचार्ज ( Surcharge ) को अगस्त में ही वापस लेने का एलान किया था। इसका असर होगा, यह दावा सरकारी था ही, उम्मीद भी थी, लेकिन संशय बस यही था कि बाजार का मूड कैसे सुधरेगा यानी कंजूमर खरीद के लिए उत्साहित होगा या नहीं…नहीं हुआ।

यू-टर्न भी काम न आया

बजट में एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलिया निवेश) पर ज्यादा सरचार्ज लगाने के फैसले से यू-टर्न लेते हुए वित्त मंत्री ने यह टैक्स वापस ले लिया था। इसके बावजूद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ( FPI ) ने अगस्त महीने में भारतीय पूंजी बाजारों से 5,920 करोड़ रुपए निकाल लिए। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगस्त माह में भारतीय पूंजी बाजारों से निकाला जाना आशा के विपरीत है।

क्या कहते हैं आंकड़े

आंकड़ों पर नजर डालें तो चौंकाते हैं। अगस्त महीने के अंत तक विदेशी पोर्टफोलिया निवेशकों ने पूंजी बाजारों से जो राशि निकाली है उनमें शेयरों से निकाली गई राशि 17,592.28 करोड़ रुपए थी। वहीं, शुद्ध कर्ज या बॉन्ड बाजार से 11,672.26 करोड़ रुपए डाले। जाहिर है, कुल निकासी 5,920.02 करोड़ रुपए रही यानी इतनी राशि वापस भारतीय पूंजी बाजार में नहीं डाली। इससे पहले, जुलाई में विदेशी निवेशकों ने पूंजी बाजार से शुद्ध रूप से 2,985.88 करोड़ रुपए निकाले थे। माना जा रहा है कि भारत में चलती मंदी के कारण जहां भारतीय उपभोक्ता की खरीद गतिविधि रुकी है, वहीं अमेरिका और चीन के ट्रेड वॉर के चलते भी एफपीआई पर विपरीत असर डाला है।
बहरहाल, बेरोजगारी, बड़े संस्थानों में छंटनी, कंजूमर कॉन्फिडेंस में कमी और सुस्त पड़े बाजार का टूटता यकीन भी इस मंदी के मुख्य कारक बने हैं। इससे न सिर्फ विदेशी निवेशकों को चिंता में डाला है, बल्कि घरेलू निवेशकों का भी आत्मविश्वास डोला है। जाहिर है, जब तक अर्थव्यवस्था के ये सभी कारक सकारात्मक न हो जाएं, नहीं लगता कि मंदी पर विजय पाने के उपायों का उम्मीद के मुताबिक असर होगा।
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