हल्दी की खेती में एक बीघे में इसके करीब 200 किलो बीज लग जाते है। इसकी खेती में यूरिया और डीएपी भी ज्यादा नहीं डालनी पड़ती है। हल्दी की खेती में चार से पांच बार तक सिंचाई की जरूरत पड़ती है। जानकारों का कहना है कि अगर कोई किसान हल्दी की खेती करना चाहता है तो उसे हल्दी के दो पौधों के बीच में करीब एक फीट का गेप रखना चाहिए। एक बीघा में हल्दी की खेती पर छह सात हजार रुपए की लागत आती है। जबकि एक बीघा में 20 से 25 क्विंटल हल्दी की पैदावार हो जाती है। ऐसे में एक बीघा एरिया में हल्दी की खेती में लागत की तुलना में मुनाफा ज्यादा होता है।
आपको बता दें कि हल्दी की खेती अच्छी बारिश वाले गर्म और आर्द्र इलाकों में अधिक उपयोगी है। इसकी खेती 1200 मीटर उंचाई तक वाले एरिया में भी अच्छी सिंचाई के साथ आसानी से की जा सकती है। सामान्यतया हल्दी की खेती के लिए दोमट केवाल, काली मिट्टी अच्छी होती है। इसके पीछे यह वजह भी रहती है कि कम्पोस्ट देकर कम उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में भी हल्दी की अच्छी पैदावार की जा सकती है। हालांकि इस मिट्रटी में खेती के दौरान खेत से जल निकास की पूरी व्यवस्था भी किसान को करनी चाहिए। हल्दी की खेती में आने वाली प्रमुख समस्या जिसमें इसका कंद खराब हो जाता है, उससे बचने के लिए किसानों को कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेकर ही खेती करनी चाहिए।
ये हल्दी के उत्पादक राज्य
आपको बता दें कि हल्दी मसाले के रूप में उपयोग की जाती है। भारत में सामान्यतया हल्दी की खेती (Turmeric cultivation) केरल, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक में खासतौर पर की जाती है। खाने के सामान के साथ ही औषधि तैयार करने में हल्दी का प्रयोग किया जाता है। इतना ही नहीं, अपने पीले रंग के कारण हल्दी का एक अन्य उपयोग ऊन, रेशम और सूत को रंगने में भी किया जाता है।