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मेहरानगढ़ दुखांतिका: rajasthan assembly. चौपड़ा आयोग की रिपोर्ट पेश नहीं होने पर उठे सवाल

locationजयपुरPublished: Jul 31, 2019 11:29:06 am

Submitted by:

rahul

11 साल पहले 30 सितंबर 2008 को जोधपुर के मेहरानगढ स्थित चामुंडा माता मंदिर में हुए हादसे की रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर नहीं रखने के सरकार के फैसले पर सवाल खड़े हो रहे है।

Mehrangarh
11 साल पहले 30 सितंबर 2008 को जोधपुर के मेहरानगढ स्थित चामुंडा माता मंदिर में हुए हादसे की रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर नहीं रखने के सरकार के फैसले पर सवाल खड़े हो रहे है। राज्य कैबिनेट ने तय किया है कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा क्यों कि इसका खुलासा होने से जनता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। आपकों बता दें कि 11 साल पहले नवरात्र के पहले ही दिन ही जोधपुर के मेहरानगढ स्थित चामुंडा माता मंदिर ऐसी भगदड़ मची थी कि जिसमें 216 लोगों की जान चली गई। इसके बाद तत्कालीन भाजपा सरकार इसकी जांच कराने के लिए जस्टिस चौपड़ा आयोग का गठन किया।
आयोग ने 5 मई 2011 को अपनी रिपोर्ट पेश की थी। लेकिन उसका खुलासा नहीं किया गया और अब 2019 में कांग्रेस सरकार ने तय किया है कि इस आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाए, इसके पीछे पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में गठित सब कमेटी की रिपोर्ट से सहमति जताई है। इस रिपोर्ट पर कैबिनेट ने भी अपनी मोहर लगा दी। पहली सब कमेटी ने यह पाया था कि रिपोर्ट के भाग — 2 में वर्णित कुछ तथ्य अनुमानों और मिथकों पर आधारित है, जिन्हें यदि सार्वजनिक डोमेन में रखा जाता है तो इससे जनता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, हालांकि राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि आयोग की रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में अदालत में पेश करने के निर्देश दिए है और मामले की सुनवाई 2 सितंबर तय की है।

वहीं सरकार के इस फैसले के बाद यह सवाल खड़े हो रहें है कि जसराज चौपड़ा आयोग की रिपोर्ट को आखिरकार सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा है। इस रिपोर्ट में आखिरकार ऐसा क्या है जो भाजपा और कांग्रेस की सरकारें इसका खुलासा करने से बच रहीं है। हादसे के लिए ऐसे कौन लोग जिम्मेदार है जिन्हें बचाया जा रहा है। क्या लोकतंत्र में जनता को यह अधिकार नहीं है कि वे 216 लोगों की जान लेने वाले इस बड़े हादसे की वजहों को जान सकें। ऐसे लोगों की लापरवाही और अन्य कमियों की जानकारी ले सकें। वैसे भी यदि ऐसे हादसों और कमियों का पता लगेगा तो भविष्य में सावधानी बरती जा सकेगी। वैसे सरकार ने इस हादसे के बाद राज्य मेला प्राधिकरण का गठन भी किया है जिसमें ऐसे आयोजनों के दौरान ऐसे हादसों को रोकने के लिए कुछ दिशा— निर्देश तो दिए है लेकिन यदि इसकी रिपोर्ट आती तो बड़े कदम उठाए जा सकते हैं।
रिपोर्ट के खुलासा नहीं करने के पीछे ये कैसे तर्क— राज्य कैबिनेट ने रिपोर्ट का खुलासा नहीं करने के पीछे जो तर्क दिए है उनमें एक तर्क यह है कि चौपड़ा आयोग का गठन प्रशासनिक निर्णय था। इस बारे में न तो विधानसभा में प्रस्ताव पास हुआ और न ही मंत्रिमण्डल की कोई आज्ञा जारी हुई, इसलिए इसका गठन कमीशन आॅफ इंक्वायरी एक्ट की धारा 3 ( 1 ) के तहत नहीं माना जा सकता।
इसी तरह सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय को लेकर भी महाधिवक्ता ने अपनी राय दी है किे किसी भी आदेश में यदि कोई गलत प्रावधान लिख दिया गया हो तो सिर्फ इस वजह से यह आदेश अमान्य नहीं हो जाता, बशर्ते कानून से सम्बन्धित आदेश में वर्णित शक्तियों का प्रयोग करने का प्रावधान हो
एक तर्क यह भी है कि कमीशन आॅफ इंक्वायरी एक्ट की धारा 11 में राज्य सरकार को जांच आयोग गठित करने का अधिकार है। चौपडा आयोग का गठन भी ऐसा ही निर्णय था। अत: आयोग का गठन भी धारा 11 के तहत होना माना जाए।
सरकार ने एक तर्क यह भी दिया है कि एक्ट की धारा 3 ( 4 ) के अनुसार केवल धारा 3 ( 1 ) के तहत गठित आयोग के लिए ही यह अनिवार्य है कि उसका प्रतिवेदन और की गई कार्यवाही को विधानसभा के पटल पर रखा जाए। आयोग को इस धारा के तहत गठित होना नहीं माना गया है, लिहाजा इसकी रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखा जाना आवश्यक नहीं है।
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