वहीं सरकार के इस फैसले के बाद यह सवाल खड़े हो रहें है कि जसराज चौपड़ा आयोग की रिपोर्ट को आखिरकार सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा है। इस रिपोर्ट में आखिरकार ऐसा क्या है जो भाजपा और कांग्रेस की सरकारें इसका खुलासा करने से बच रहीं है। हादसे के लिए ऐसे कौन लोग जिम्मेदार है जिन्हें बचाया जा रहा है। क्या लोकतंत्र में जनता को यह अधिकार नहीं है कि वे 216 लोगों की जान लेने वाले इस बड़े हादसे की वजहों को जान सकें। ऐसे लोगों की लापरवाही और अन्य कमियों की जानकारी ले सकें। वैसे भी यदि ऐसे हादसों और कमियों का पता लगेगा तो भविष्य में सावधानी बरती जा सकेगी। वैसे सरकार ने इस हादसे के बाद राज्य मेला प्राधिकरण का गठन भी किया है जिसमें ऐसे आयोजनों के दौरान ऐसे हादसों को रोकने के लिए कुछ दिशा— निर्देश तो दिए है लेकिन यदि इसकी रिपोर्ट आती तो बड़े कदम उठाए जा सकते हैं।
इसी तरह सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय को लेकर भी महाधिवक्ता ने अपनी राय दी है किे किसी भी आदेश में यदि कोई गलत प्रावधान लिख दिया गया हो तो सिर्फ इस वजह से यह आदेश अमान्य नहीं हो जाता, बशर्ते कानून से सम्बन्धित आदेश में वर्णित शक्तियों का प्रयोग करने का प्रावधान हो
एक तर्क यह भी है कि कमीशन आॅफ इंक्वायरी एक्ट की धारा 11 में राज्य सरकार को जांच आयोग गठित करने का अधिकार है। चौपडा आयोग का गठन भी ऐसा ही निर्णय था। अत: आयोग का गठन भी धारा 11 के तहत होना माना जाए।
सरकार ने एक तर्क यह भी दिया है कि एक्ट की धारा 3 ( 4 ) के अनुसार केवल धारा 3 ( 1 ) के तहत गठित आयोग के लिए ही यह अनिवार्य है कि उसका प्रतिवेदन और की गई कार्यवाही को विधानसभा के पटल पर रखा जाए। आयोग को इस धारा के तहत गठित होना नहीं माना गया है, लिहाजा इसकी रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखा जाना आवश्यक नहीं है।