रामबहादुर राय ने अपने वक्तव्य में कहा कि कोरोना के समय में गुलाब कोठारी की पुस्तक का लोकार्पण हो रहा है। ऐसा ही बड़ा प्रयास पत्रिका के संस्थापक कर्पूर चन्द्र कुलिश जी ने किया था। तब देश इमरजेंसी के दौर से गुजर रहा था, आज देश कोरोना जैसी महामारी का सामना कर रहा है। इमरजेंसी के समय जब पत्रकारों की कलम रुक गई थी, उस समय कुलिश जी ने एक दिन सोचा कि इस समय गांवों की तरफ चला चाहिए।
गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने कहा कि हिन्दी दिवस पर देश में गुलाब जी की महत्वपूर्ण पुस्तक सामने आई है। उन्होंने विविध विधाओं और विषयों पर लिखा है, अपने अनुभवों को शब्दों में पिरोया है। उन्होंने पत्रकारिता को ऊचांइया दी हैं, अब लोक संस्कृति को आम लोगों से जोड़ने का काम कर रहे हैं। पुस्तक में स्थानीय भाव को देखा जा सकता है, इन्होंने समाप्त होती कलाओं के प्रति मानवीय पक्ष को सामने रखने का काम किया है।
इस अवसर पर गुलाब कोठारी ने कहा कि यह पुस्तक राजस्थान का दर्पण है। हमारा जीवन और भूगोल पर्यायवाची होते हैं। जो यहां के भूगोल को नहीं समझ नहीं सकता, वह राजस्थान को नहीं समझ सकता। भूगोल से अन्न पैदा होता है, यहां से ही संस्कृति जन्म लेती है। यही संदेश पाठकों तक पहुंचना चाहिए। मुझे तकलीफ यह है कि आज शिक्षा में बच्चों को स्थानीय भूगोल पढ़ाया ही नहीं जाता। खुद के प्रदेश में नदियों, खान-पान, रहन-सहन तक की जानकारी नहीं रखते। बच्चों को अपनी धरती के बारे में तक जानकारी नहीं है। संस्कृति के नाम से सिर्फ नाच-गान को जानते हैं, जबकि संस्कृति का संबंध प्रकृति से है। इस पुस्तक के जरिए युवाओं को अपनी संस्कृति से जोड़ना और उससे प्यार करने के लिए प्रेरित करना उद्देश्य है।