...तो इस वजह से कुरजां के वतन वापसी का दौर शुरू
सात समंदर पार से आते हैं साइबेरियन पक्षी
26 हजार फीट ऊंची उड़ान भरकर पहुंचते है भारत
Published: 18 Mar 2020, 02:57 PM IST
जयपुर। सात समन्दर पार कर शीतकालीन प्रवास पर हजारों की तादाद में पश्चिमी राजस्थान में आने वाली कुरजाओं की वापसी का दौर अब शुरू हो चुका है।
आपको बता दें चीन, मंगोलिया, कजाकिस्तान सहित मध्य एशिया से कुरजां पक्षी सर्दी के मौसम में भारत व पश्चिमी राजस्थान में प्रवास करती है। सितम्बर से फरवरी व मार्च माह तक मध्य एशिया में बर्फबारी होती है। ऐसे में कुरजाओं के लिए मौसम अनुकूल नहीं रहता है। इसी कारण वे यहां आती है। यहां का वातावरण उनके लिए अनुकूल रहता है। वे सितम्बर व अक्टूबर माह से लेकर फरवरी व मार्च माह तक यहां निवास करती है। जिससे क्षेत्र के सरोवर भी कुरजाओं की कलरव से गूंजते नजर आते है।
सात समन्दर पार कर शीतकालीन प्रवास पर हजारों की तादाद में पश्चिमी राजस्थान में आने वाली कुरजाओं की वापसी का दौर अब शुरू हो चुका है।
आपको बता दें चीन, मंगोलिया, कजाकिस्तान सहित मध्य एशिया से कुरजां पक्षी सर्दी के मौसम में भारत व पश्चिमी राजस्थान में प्रवास करती है। सितम्बर से फरवरी व मार्च माह तक मध्य एशिया में बर्फबारी होती है। ऐसे में कुरजाओं के लिए मौसम अनुकूल नहीं रहता है। इसी कारण वे यहां आती है। यहां का वातावरण उनके लिए अनुकूल रहता है। वे सितम्बर व अक्टूबर माह से लेकर फरवरी व मार्च माह तक यहां निवास करती है। जिससे क्षेत्र के सरोवर भी कुरजाओं की कलरव से गूंजते नजर आते है।
गत कुछ वर्षों से जिले में कम बारिश के कारण अकाल की स्थिति है। सरोवरों में पानी की कमी तथा कड़ाके की ठण्ड नहीं होने के कारण कुरजाओं का जैसलमेर जिले में प्रवास कम नजर आया, लेकिन वर्ष २०१९ में जिलेभर में अच्छी बारिश होने के कारण क्षेत्र के सरोवरों में पानी भरा हुआ है। इसी के कारण इस वर्ष कुरजाओं की अधिक आवक नजर आई। जिले में दर्जनों स्थानों पर कुरजा अपना पड़ाव डालती है। इस वर्ष क्षेत्र के लाठी के पास डेलासर, सोढ़ाकोर, खेतोलाई तालाब, भणियाणा के भीम तालाब, रामदेवरा के मावा सहित कई तालाबों पर सैंकड़ों की तादाद में कुरजाओं ने अपना पड़ाव डाला। जिससे ये तालाब कुरजाओं की कलरव से गूंजते नजर आए।
वन्यजीव प्रेमी राधेश्याम पेमाणी ने बताया कि गत सितम्बर से अक्टूबर माह तक क्षेत्र में सैंकड़ों कुरजाओं ने अपना पड़ाव डाला था। फरवरी माह के दूसरे पखवाड़े में इनकी वतन वापसी का दौर शुरू हो गया है। इस बार विशेषज्ञों की ओर से इन पर शोध भी किया गया तथा कई नई कुरजाएं भी नजर आई।
ये पक्षी अगस्त से सितंबर के दौरान प्रवास करके भारत में पहुंचते है। यह एक बड़े समूह में 'वी' की आकृति में उड़ते है। उड़ान के दौरान ये करीब २६ हजार फीट की ऊंचाई पर होते हैं। इनका प्रवास काफी कठिनाई भरा होता है। प्रवासी पक्षी कुरजां वजन में करीब दो से ढाई किलो की होती है तथा यह पानी के आसपास खुले मैदानों व समतल जमीन पर ही अपना अस्थायी डेरा डालकर रहती है। इन पक्षियों का मुख्य भोजन वैसे तो मोतिया घास होता है तथा पानी के किनारे पैदा होने वाले कीड़े मकोड़ों को खाकर भी अपना पेट भरती है एवं खेतों में होने वाला मतीरा भी इनका पसंदीदा भोजन माना जाता है। इन पक्षियों की पसंदीदा जगह खुले मैदान होते है। यह करीब छह-सात माह तक भारत में रहने के पश्चात् यहां गर्मी के साथ ही पुन: अपने घरों की ओर लौट जाती है।
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