टीम ने फर्म पर पाया कि सूखे-खराब मटर को उबालने के बाद हरा रंग चढ़ाया जा रहा था। रिफाइंड तेल और सोडा मिलाकर सिंथेटिक हरे रंग से खराब मटर को ‘ताजा’ बनाया जा रहा था। फिर राजापार्क, रामगंज, ट्रांसपोर्टनगर सहित अन्य क्षेत्रों में रेस्त्रां, ढाबों और बेकरी पर बेचा जा रहा था। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (जयपुर प्रथम) डॉ. नरोत्तम शर्मा ने बताया कि मौके पर तैयार पड़े 2 हजार किलो मटर नष्ट कराए गए। साथ ही 700 किलो सूखे मटर सीज किए गए। जांच के लिए 2 नमूने लिए गए हैं। शर्मा ने बताया कि इस तरह सिंथेटिक रंग से तैयार किए गए मटर खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत प्रतिबंधित हैं। ऐसे मटर बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं। जबकि इन्हें रेस्त्रां-ढाबों पर कई दिनों तक सब्जी बनाने में काम लिया जाता है।
इस मिलावट का ठिकाना
– फर्म का नाम : साईं बोइल पीज – मालिक का नाम : नरेन्द्रनाथ भार्गव
– पता : साकेत कॉलोनी, आदर्शनगर
मुनाफाखोरी का गणित फर्म ने सूखे मटर 25 रुपए प्रति किलो के भाव से खरीदे थे। फिर एक किलो मटर से 2 किलो मटर तैयार किए जा रहे थे। उनहें 40 से 50 रुपए प्रति किलो भाव से बेचा जा रहा था। यानी 25 रुपए के माल को प्रोसेस कर 100 रुपए में बेचा जा रहा था।
खराब मटर यों परखें
– मटर को पानी से धोएं, खराब हुए तो हरा रंग नजर आ जाएगा – मटर को रगड़ें, इससे भी मिलावट की पहचान हो सकेगी