राज्य नोडल अधिकारी डॉ सुनील सिंह ने बताया कि यहां पूरा फेट निकला हुआ दूध था। जिसकी कीमत करीब 10 रूपए प्रति किलो ही है। एक किलो मावे में करीब 5 किलो दूध काम लिया जा रहा है। जिसमे सफेदी के लिए नॉन एडिबल हाइड्रो अखाद्य रसायन डाल दिया जाता है। इसके साथ ही तेल डालकर उसे मावे का रूप दिया जा रहा है। टीम ने माना है कि यहां एक किलो मावे की लागत 70 से 80 रूपए आ रही है। जिसे यहां से 100 रूपए किलो में बेच दिया जाता है। जो बाद में मंडियों में करीब 150 रूपए प्रति किलो में बेचा जा रहा है। फर्म के मालिक का नाम संतोष ढाका है।
बीकानेर से मिले थे सुराग बीकाने में की गई कार्रवाई के दौरान जोधपुर से इनकी आपूर्ति के कुछ सुराग मिले थे। इसके बाद यहां के लिए योजना बनाई गई। जोधपुर जिला कलक्टर से भी बात की गई। उन्होंने जोधपुर के सभी थानों को सहयोग करने के निर्देश दिए। निदेशक जनस्वास्थ्य डॉ. वी.के. माथुर ने बताया कि इसके बाद एक अन्य यूनिट पर छापा मारा गया तो वह बंद मिली। संभवत किसी तरह टीम के बारे में जानकारी लगते ही यहां का संचालक यूनिट पर ताला लगाकर भाग गया।
कच्चे इलाकों में कई यूनिट डॉ सुनील सिंह के अनुसार इस इलाके में दर्जनों यूनिट्स काम कर रही हैं। जिन पर सभी तक पहुंचने की कोशिश की जाएगी। हैरत की बात यह भी सामने आई है कि ये यूनिट्स लंबे समय से काम कर रही हैं। लेकिन विभाग के अधिकारियों की नजर इन पर बमुश्किल ही पड़ी। यहां से बीकानेर, जोधपुर और नागोर में मावे की आपूर्ति त्योंहार, शादी विवाह और समारोहों में होती है।