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बाजरा पैदावार में देश में सबसे आगे, बीज उत्पादन में पीछे

locationजयपुरPublished: Sep 05, 2020 06:23:31 pm

Submitted by:

Amit Pareek

बीज उत्पादन के लिए दूसरे राज्यों पर रहना पड़ता निर्भर, अफसर वातावरण ठीक नहीं होने की ले रहे आड़

बाजरा पैदावार में देश में सबसे आगे, बीज उत्पादन में पीछे

बाजरा पैदावार में देश में सबसे आगे, बीज उत्पादन में पीछे


जयपुर. देशभर में बाजरे के उत्पादन में राजस्थान का बोलबाला है। इसकी फसल किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होती है और पैदावार भी सालाना तय लक्ष्य के लगभग पूरी होती है। लेकिन हैरत की बात है कि, इसमें राज्य का एकाधिकार होने के बावजूद बीज उत्पादन के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। यही कारण है कि किसान कृषि विभाग के बीज से ज्यादा निजी कंपनियों पर विश्वास करते आ रहे है। कई सालों से यही परंपरा चलती आ रही है़। हर साल बुवाई के लिए करीब 1 लाख क्विंटल से ज्यादा बीज निजी कंपनियों द्वारा आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और गुजरात राज्यों से मंगवाकर बेचा जा रहा है। इसमें अमूमन बीज संकर किस्म का होता है। जबकि विभाग की ओर से महज 20 हजार टन बीज ही मुहैया कराया जाता है़। अच्छी पैदावार और गुणवत्ता के लिए किसान निजी कंपनियों के बीज पर ही निर्भर रहते हैं। सामने आया कि यहां सरकार ने करीब एक दर्जन से ज्यादा बीज किस्म भी तैयार की, लेकिन बीज हर बार किसान की पहुंच से दूर रहता है। इसके कारण यहां सालाना निजी कंपनियों का बाजार गर्म रहता है। राज्य में बाजरे का उत्पादन देशभर के बाजरा उत्पादन का 50 फीसदी है। यहां सालाना करीबन 45 लाख हैक्टेयर भूमि में 45 से 50 लाख मीट्रिक टन बाजरे की पैदावार होती है। प्रति हैक्टेयर की बात करें तो लगभग 10 से हैक्टेयर का उत्पादन होता है। इसकी फसल 70 से 80 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी सर्वाधिक बुवाई पश्चिमी राजस्थान के बीकानेर, नागौर, बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर जिले में होती है, लेकिन सर्वाधिक पैदावार पूर्वी राजस्थान में होती है। क्योंकि यहां किसान पानी की उपलब्धता, उर्वरक, बीज आदि का विशेष खयाल रखते हैं। कृषि विभाग एक दशक से बीज उत्पादन के प्रयास में जुटा है, लेकिन 2018 में महज बीसलपुर बांध के समीप कुछ एरिया में एक बार सफलता मिली। दोबारा कोई खास प्रयास नहीं किए गए है। इससे पूर्व पाली, सिरोही, जालौर, रेवदर समेत कई जगह प्रयास भी किए गए थे।
जिम्मेदारों का तर्क
कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यहां फसल उत्पादन के लिए वातावरण ठीक है, लेकिन बीज उत्पादन के लिए अनुकूल नहीं है। आंध्रप्रदेश, तेलंगाना में वातावरण ठीक है। इसलिए सभी कंपनियां वहीं बीज तैयार करती हैं। वो वहां फरवरी-मार्च में बीज तैयार करती हैं, तापमान भी स्थिर रहता है। यहां बदलता रहता है, इसलिए दाना नहीं बन पाता है।
13 किस्म विकसित करने का दावा
दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिक और अखिल भारतीय अनुसंधान बाजरा परियोजना के प्रभारी डॉ. एलडी शर्मा का कहना है कि दुर्गापुरा अनुसंधान केंद्र में बाजरे को लेकर 1977 से काम किया जा रहा है। अब तक यहां इसकी 13 किस्में तैयार हो चुकी हैं। लगभग सभी किस्म के बीज बाजार में उपलब्ध हैं। किसानों की मानें तो बाजार में स्थिति इसके उलट है। बिक्री केंद्रों पर नाममात्र ही बीज की किस्म उपलब्ध हैं। ज्यादातर किसान निजी कंपनियों के बीज को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। उनका कहना है कि, कृषि विभाग के द्वारा तैयार बीजों से पैदावार कम होती है, जबकि निजी कंपनियों के बीज से पैदावार और चारा दोनों अच्छे होते हैं। इसके अलावा निजी कंपनियां किसानों को नजदीक खाद-बीज की दुकान या घर बैठे बीज उपलब्ध करा देती हैं। जबकि विभाग के बीज बिक्री केंद्र नाममात्र ही हैं और वो भी दूरी पर होते हैं। यही वजह है कि, बीज बिक्री में निजी कंपनियों का बोलबाला है।
बाजार में खूब बिक रहा नकली बीज
बाजार में कई निजी कंपनियों द्वारा नकली बीज का कारोबार पनप रहा है। जांच में आए दिन अमानक स्तर के नमूने सामने आ रहे हैं। निजी कंपनियां किसानों को अच्छी पैदावार का लालच देकर ठग रही हैं। इससे व महंगाई से बचने के लिए बीते पांच साल से सालाना बाजरा, मूंग, मोठ, ग्वार आदि बीज रख लेता हूं। जिससे फसल के नुकसान का भी कम खतरा रहता है और पैदावार भी ठीक होती है।
– सुरेंद्र अवाना, किसान
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