उन्होंने कहा कि नई आबकारी नीति में आरटीडीसी से जुड़े परिसरों में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति देने का जिक्र है। इससे राज्य में शराब की दुकानों की संख्या बढ़ना तय है जबकि सरकार कई बार कह चुकी है कि दुकानों की संख्या नहीं बढ़ाई जाएगी। उन्होंने आबकारी नीति में होटल बार में शराब के करीब तीन अतिरिक्त काउंटर लगाने के प्रावधान पर भी सवाल खड़े किए।
सिंघवी ने आबकारी नीति बनाने वाले अधिकारियों पर हितों के टकराव का आरोप लगाते हुए कहा कि नयी नीति में होटल बार के लिए 15 से 30 लाख रुपए तक की वार्षिक फीस निर्धारित की गई है, लेकिन सिविल क्लब को दो लाख रुपये और राज्य कर्मचारियों के क्लब को एक लाख रुपये की ही फीस देनी होगी। उन्होंने कहा कि ऐसा करके आबकारी नीति बनाने वाले अधिकारियों ने खुद और अपने साथियों से संबंधित क्लबों को सीधा-सीधा वित्तीय लाभ पहुंचाने का रास्ता खोला है, जो कानूनी दृष्टि से अपराध है।