सुप्रीम कोर्ट फिर गंभीर सुप्रीम कोर्ट ( Spreme Court ) ने भीड़ के पीट-पीट कर मार डालने ( Mob Lynching ) की बढ़ती घटनाओं को रोकने और कोर्ट के गत वर्ष के मॉब लिंचिंग रोकने के आदेश को कड़ाई से लागू करने की मांग पर केन्द्र सरकार ( Central Government ), मानवाधिकार आयोग ( Humanright Commision ) व 11 राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। बता दें देश में मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष तहसीन पूनावाला के मामले में ऐसी घटनाएं रोकने के लिए विस्तृत आदेश दिए थे, लेकिन हुआ वही ढाक के तीन पात।
राजस्थान ने यह भुगता
1. 10 नवंबर 2016 को अलवर के गोविंदगढ़ में गोतस्करी के शक में भीड़ ने उमर की पीट-पीट कर हत्या कर शव रेलवे ट्रैक पर फेंका;
2. 1 अप्रेल 2017 को अलवर में जयपुर दिल्ली राजमार्ग पर भीड़ ने गोतस्करी के शक में पहलू खां को पीट-पीटकर मार डाला;
3. 20 जुलाई 2018 की रात में अलवर में ही गोतस्करी के शक में हरियाणा के कोलगांव निवासी रकबर खां को लालवंडी गांव में भीड़ ने मार डाला;
4. 16 जुलाई 2019 को अलवर के ही भिवाड़ी के फलसा गांव में 28 साल के हरीश जाटव की भीड़ ने बेरहमी से पीटते हुए हत्या कर दी
5. 23 मई 2018 को प्रदेश के पाली जिले के निमाज गांव का 25 साल का कालूराम मेघवाल बेंगलूरु में भीड़ के हाथों मारा गया।
नई घटना
दिल्ली में 26 जुलाई 2019 को चोरी के शक में एक नाबालिग को भीड़ ने पीट—पीट कर मार डाला। भारत के परिप्रेक्ष्य में मॉब लिंचिंग भारतीय संस्कृति में मॉब लिंचिंग शब्द का कोई अर्थ नहीं है। पिछले पांच-छह साल में यह शब्द कई बार सुर्खी बन चुका है। संस्कृत और हिंदी भी में लिंचिंग का सीधा अर्थ नहीं है। इससे स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति में ऐसी घटनाएं कभी स्वीकार्य नहीं थी।
पहली घटना वर्ष 1999 में 22 जनवरी को ओडिशा ( Odisha ) में लेप्रोसी आश्रम चलाने वाले ऑस्ट्रेलियन मिशनरी ग्राहम स्टेंस ( Graham staines ) और उनके दाेे मासूम पुत्रों 10 वर्षीय फिलिप और 6 वर्षीय टिमोथी को भीड़ ने धर्मांतरण कराने के आरोप में जिंदा जला दिया था। तब तत्काल एक्शन हुआ और मुख्य आरोपी दारा सिंह (
dara singh ) को फांसी की सजा सुनाई गई थी, जो बाद में हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदल दी थी। इसके बाद अपवाद को छोड़ दें तो 2014 तक मॉब लिंचिंग लोप हो गई थी।
भीड़ तंत्र का मनोविज्ञान मॉब लिंचिंग की प्रासंगिकता समाज में स्थिरता आने और कानून-व्यवस्था पर भरोसा बढ़ने के बाद ख़त्म होती गई। यह मामला वैसे भी भारत से नहीं फ्रांसीसी क्रांति की भीड़ या फिर कुक्लक्स क्लान ( kkk ) की नस्लीय भीड़ से जुड़ा माना जाता था। इस अति दक्षिणपंथी घृणा समूहों (ट्रिपल के) का घोषित उद्देश्य श्वेत अमेरिकियों अधिकारों और हितों की रक्षा करना था। तब श्वेतों की भीड़ द्वारा एक काले व्यक्ति को मारने का पुराना मसला ही चर्चा का विषय होता था। यह दीगर बात है कि तब भी गॉर्डन ऑलपोर्ट और रोजर ब्राउन जैसे बड़े मनोवैज्ञानिक भी भीड़ के मनोविज्ञान को एक सम्मानजनक विषय नहीं बना सके।
बहरहाल, मॉब लिंचिंग के खिलाफ सख्त कानून बनना जरूरी है। चाहे यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हो या फिर सरकार की स्वप्रेरणा से।