scriptजिन्हें अपनों ने नहीं अपनाया, ऐसे एचआईवी पीड़ित बच्चों की मां है सुशीला… | Mother's day : susheela like a mother for HIV positive children | Patrika News

जिन्हें अपनों ने नहीं अपनाया, ऐसे एचआईवी पीड़ित बच्चों की मां है सुशीला…

locationजयपुरPublished: May 11, 2019 09:55:39 pm

Submitted by:

Deepshikha Vashista

आश्रय उपलब्ध करवाने के साथ कर रही हैं सेवा

Mother's day

जिन्हें अपनों ने नहीं अपनाया, ऐसे एचआईवी पीड़ित बच्चों की मां है सुशीला…

जयपुर. जिन मां बाप को एड्स है उनके होने वले बच्चें भी एड्स पीड़ित होते हैं। मां बाप के बाद उन बच्चों की जिम्मेदारी समाज नहीं लेता। ऐसे में इन बेसहारा बच्चों की मां बनकर परवरिश और सेवा करती है सुशीला। जयपुर की सुशीला जुनून के साथ समाज की सोच से लड़ रही है, जिसने एचआईवी पॉजिटिव लोगों को पहले ही जीने की आस छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। सुशीला अब ऐसे बच्चों और पीड़ितों के अंदर जीने की ललक जगाने की कोशिश कर रही हैं और उनके अधिकारों के लिए लड़ भी रही हैं।
मरने से पहले मरीज को तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता

सुशीला का कहना है कि इलाज के समय इन लोगों के साथ दुर्व्यवहार होता है। सोचने वाली बात यह है कि बीमार के साथ सही व्यवहार नहीं होगा तो वह एकदम टूट जाएगा। इन एचआईवी पीड़ितों के साथ भी ऐसा व्यवहार होता है। एक मरीज को डॉक्टर से बहुत उम्मीद होती है, लेकिन मरने से पहले मरीज को तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता है।
37 बॉयज और 19 गर्ल्स

सुशीला ने बताया कि उनके पास अभी वर्तमान में 37 एचआईवी पॉजिटिव लड़के और 19 एचआईवी पॉजिटिव लड़कियाँ हैं जिनके हक के लिए हम लड़ाई लड़ रहे है। इसके साथ रिहॉन प्रोजेक्ट भी चल रहे है।
Mother's day
एचआईवी पॉजिटिव बच्चों का आश्यिाना

शहर में एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के लिए आश्यिाना है ‘आश्रय’। सुशीला ने बताया कि अगर बच्चा एचआईवी नेगेटिव है तो कई चाइल्ड होम बच्चे को रखने के लिए तैयार हो जाते हैं, लेकिन यदि बच्चा एचआईवी पॉजिटिव है तो कोई चाइल्ड होम उसे अपने यहां रखने को तैयार नहीं होता। ऐसे में ‘आश्रय केयर होम’ बच्चों का आश्रय है जहां बच्चों के लिए रहने, खाने पीने की सभी सुविधाएं मौजूद हैं।
Mother's day
मां और पति से मिली समाज की सोच को बदलने प्रेरणा

सुशीला ने बताया कि समाज की सोच को बदलने प्रेरणा उनको प्रेरणा उनकी मां और पति से मिली। उन्होंने बताया जब मैंने पॉजिटिव महिलाओं को तिरस्कृत होते देखा तो मैंने इनके हक की लड़ाई लड़ने के लिए सोच लिया था, तब परिवार ने उनका साथ दिया।
सुशीला ने बताया कि इन बच्चों को जब भी चोट लगती है तो मैं खुद इनके दवाई लगाती हूं। कई लोगों ने भी कहा तुम्हे एड्स हो जाएगा। लेकिन मेरा मानना है कि मरना तो एक दिन सभी को है, क्यों न एचआईवी पीड़ितों की सेवा कर अपना जीवन सार्थक किया जाए।
Mother's day
अब बदल रहा समाज का नजरिया

सुशिला का कहना है कि एचआईवी पॉजिटिव लोगों के लिए लड़ना काफी चुनौतीपूर्ण काम है, क्योंकि हमारे समाज एचआईवी पॉजिटिव लोगों को नहीं अपनाता। हालाकि पहले की अपेक्षा आज लोगों की सोच में काफी बदलाव आया है। जिस दिन समाज इन बच्चों और लोगों को अपनाने लग जाएगा उस दिन सही मायने में जीत होगी।

ट्रेंडिंग वीडियो