मानवाधिकार आयोग में केस किया, कई वर्ष पर विकलांगता प्रमाण पत्र बना। उसके बाद ही ऑटिज्म के विकलांगता प्रमाण पत्र बनने शुरू हुए। फिर बेटे को सिखाना शुरू किया। जब बेटा थोड़ा सीख गया, तब उसे सामान्य स्कूल में एडमिशन दिलवाया। स्कूल पास करने के बाद कॉलेजों ने प्रवेश देने से मना कर दिया। फिर से कोर्ट गए, कोर्ट के ऑर्डर के बाद ही एक निजी कॉलेज ने प्रवेश दिया और अक्षय प्रदेश का पहला ऑटिस्टिक ग्रेजुएट बना। लेकिन, बीए करने के बाद भी उसे कहीं नौकरी नहीं मिली।
अक्षय के पिता नवनीत भटनागर सरकारी नौकरी में हैं। एक दिन हम बहुत हताश हो गए, नवनीत ने यहां तक कह दिया कि काश, मेरी मौत हो जाए और मेरी जगह अक्षय को नौकरी मिल जाए। लेकिन, फिर साल 2016 में ऑटिज्म को विकलांगता की श्रेणी में माना गया। हमने फिर कोर्ट से ऑर्डर करवाकर अक्षय को प्रतियोगी परीक्षा दिलवाई। आज वह राजस्थान विश्वविद्यालय में नौकरी कर रहा है।
निर्वाचन आयोग ने बनाया ब्रांड एंबेसेडर आज अक्षय राजस्थान विश्वविद्यालय में नौकरी कर रहा है। यही नहीं उसे कई स्टेट व नेशनल लेवल के अवॉर्ड मिल चुके हैं। निर्वाचन आयोग ने भी इस चुनाव में उसे ब्रांड एंबेसेडर बनाया था। आज जब उसकी सफलता देखती हूं तो उसके आगे मेरा संघर्ष बौना नजर आता है।