मध्यप्रदेश (MP) में सन 2012 से अब तक 141 बाघों (tigers) की मौत हुई है। इनमें से सिर्फ 78 मौतें सामान्य हैं। छह बाघों की मौत अपने क्षेत्र पर अधिकार को लेकर बाघों के बीच हुई लड़ाई में हुई है। वन मंत्री उमंग सिंघार का कहना है कि पोचिंग (poaching) की संख्या कम है, कॉनफ्लिक्ट ज्यादा है। एक टाइगर के लिए 60-80 किमी का एरिया। उसके कारण ज्यादा मौतें हुई हैं। यह हम मानते हैं। सन 2012 से 2018 के बीच देशभर में 657 बाघों की मौत हुई, जिनमें से 222 की मौत की वजह सिर्फ शिकार है। जानकारों के मुताबिक इसकी दो और प्रमुख वजहें हैं। आबादी वाले इलाके में जाना और आबादी बढऩे से बाघों के वर्चस्व को लेकर उनकी आपसी लड़ाई।
सात साल में कुछ नहीं हुआ सिंघार कहते हैं कि मध्यप्रदेश (MP) के अंदर नेशनल पार्क (national park) अलग-अलग टुकड़ों में बंटे हैं। उनको हम एक कॉरिडोर से जोड़ रहे हैं, ताकि कॉनफ्लिक्ट न हो। जगह मिले रहने की। ये तो जंगल के राजा हैं। अपने हिसाब से रहते हैं। आने वाले वक्त में आप देखेंगे। एक और कारण यह है कि दूसरे राज्यों में टाइगर कॉरिडोर और जंगल बड़े क्षेत्रों में फैले हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में जंगल बड़े क्षेत्रों में नहीं फैले हैं, इसलिए शिकारी आसानी से घात लगा लेते हैं। स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स (special tiger protection force) बनाने के समझौते के तहत दो साल में हथियारबंद फोर्स बनाकर उनको तैनात करना था, लेकिन सात साल बीत गए, हुआ कुछ नहीं। अब सरकारी फाइलों ने थोड़ी रफ्तार पकड़ी है। देखते हैं बाघ (tiger) बचाने के लिए यह फोर्स फाइलों से निकलकर जंगलों तक कब पहुंचेगी।