scriptMustard Crop: सरसों तेल में गिरावट, कड़ाके की सर्दी में भजिए खाना होगा सस्ता | Mustard oil declines, food will be cheaper in the cold winter | Patrika News

Mustard Crop: सरसों तेल में गिरावट, कड़ाके की सर्दी में भजिए खाना होगा सस्ता

locationजयपुरPublished: Sep 29, 2022 04:54:22 pm

देश में 111 लाख मैट्रिक टन सरसों के उत्पादन में करीब 50 फीसदी हिस्सा राजस्थान का रहता है। यदि राजस्थान को सरसों उत्पादक राज्य घोषित कर दिया जाए तो किसानों को खादए बीज और अन्य आदानों पर अनुदान मिलना प्रारंभ हो जाएगा।

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देश में 111 लाख मैट्रिक टन सरसों के उत्पादन में करीब 50 फीसदी हिस्सा राजस्थान का रहता है। यदि राजस्थान को सरसों उत्पादक राज्य घोषित कर दिया जाए तो किसानों को खादए बीज और अन्य आदानों पर अनुदान मिलना प्रारंभ हो जाएगा। मस्टर्ड ऑयल प्रॉड्यूशर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानि मोपा के संयुक्त सचिव अनिल चतर का कहना है कि देश में इस साल 111 लाख मैट्रिक टन सरसों का उत्पादन आंका गया है, उसमें से अभी तक 75 लाख मैट्रिक टन के करीबन फरवरी माह से अब तक पिलाई हो गई, बकाया 30 लाख मैट्रिक टन के करीबन स्टॉक अभी देश में किसानों के पास हैं एवं 5 से 6 लाख मैट्रिक टन सरसों उधोग एवं ट्रेड के पास हैं।
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देश में सरसों का उत्पादन 85 लाख मैट्रिक टन
पिछले साल की तुलना में देश में सरसों का उत्पादन 85 लाख मैट्रिक टन के करीब हुआ था एवं इस समय सरसों का स्टॉक पड़ा है, जो कि 35 से 36 लाख मैट्रिक टन हैं। सरसों में पिछले एक माह में 750 रूपए प्रति क्विण्टल की मंदी आ गई। एक माह पूर्व सरसों का भाव 7000 रुपए 42 प्रतिशत तेल कंडीशन जयपुर डिलीवरी था, जो कि आज भाव 6250 रुपए प्रति क्विण्टल रह गया। भारत सरकार ने तेल तिलहन में स्टॉक सीमा लगा रखी है, जबकि गत वर्ष के मुकाबले सभी तेल तिलहन में 35 से 40 प्रतिशत की मंदी आ गई हैं। ऐसे समय में स्टॉक सीमा हटाने के लिए मोपा ने भारत सरकार को लिखा हैं कि वर्तमान में देश में 35 लाख मैट्रिक टन सरसों, 30 लाख मैट्रिक टन सोयाबीन एवं आने वाले दिनों में 120 लाख मैट्रिक टन सोयाबीन, 80 लाख मैट्रिक टन मूंगफली एवं अन्य तिलहन 20 से 25 लाख मैट्रिक टन कुल मिलाकर 300 लाख मैट्रिक टन के करीब तिलहन देश मे तैयार खड़ा हैं एवं दामों में भी भारी मंदी आ गई हैं ऐसे में समय रहते स्टॉक सीमा नहीं हटाई गई तो आने वाले समय में किसान का माल बहुत ही कम दाम में बाजार में बिकेगा, जिसका सीधा असर रबी की फसल पर पड़ेगा और एक बार किसान पुनः तिलहन की खेती से दूर हो जाएगा और हमें फिर विदेशी तेलों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
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