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नाम शांति, जीवन अशांत

locationजयपुरPublished: Aug 23, 2019 07:01:47 pm

Submitted by:

Rakhi Hajela

एक ओर सरकार बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा दे रही हैं वहीं दूसरी ओर हमारी बेटियां आज भी उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर हैं। हम बात कर रहे हैं भूपालसागर उपखण्ड क्षेत्र की पंचायत उसरोल के गांव रूपपुरा की रहने वाली शान्ति की। जो अपने पिता नाथू लाल नायक की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण दस साल से बिस्तर पर पड़ी है और उसे देखने वाला कोई नहीं है। शांति की शादी हो चुकी है लेकिन पति ने उससे नाता तोड़ रखा है, वहीं प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की ओर से उसकी कोई सुध नहीं ली जा रही। एेसे में शांति को उसकी अपनी पहचान तक नहीं मिल पा रही। पेश है एक रिपोर्ट…
 

नाम शांति, जीवन अशांत

नाम शांति, जीवन अशांत

बीपीएल ( BPL ) और आधार कार्ड ( Aadhar card ) अब तक नहीं बन सका
आपको बता दें कि शारीरिक रूप से विकलांग शांति के पिता नाथूलाल कई बार सरकार ( Government ) की ओर से प्रायोजित किए जाने वाले शिविरों में बीपीएल कार्ड बनाने और शांति का आधार कार्ड बनाने की अर्जियां तक दे चुके हैं लेकिन शांति पर किसी को तरस नहीं आया जिसका नतीजा यह रहा कि उसका बीपीएल और आधार कार्ड अब तक नहीं बन सका है। शांति के पिता का कहना है कि पंच से लेकर वार्ड पंच, सरपंच से लेकर प्रधान और प्रधान से लेकर विधायक किसी भी अधिकारी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। सामाजिक न्यायिक अधिकारिता विभाग ( Social and justice Department ) और पंचायत समिति भूपालसागर ने उसे व्हीलचेयर देकर अपना दायित्व पूरा कर लिया। सामाजिक न्यायिक अधिकारिता विभाग ने शांति को इलाज के लिए नारायण सेवा संस्थान ( Narayan Sewa Sanathan ) भी भेजा लेकिन वहां भी उसका इलाज नहीं हो पाया।
शांति के पिता के मुताबिक इलाज के लिए शांति को कई बार सरकारी अस्पताल में भी ले जाया गया लेकिन भर्ती करने के बाद भी उसका इलाज नहीं किया गया। आपको बता दें कि दस साल से विकलांगता के कारण बिस्तर पर पड़ी शांति को सरकार की ओर से दी जाने वाली पेंशन भी अब तक नहीं मिल सकी है। जबकि उसके शरीर का आधा हिस्सा काम नहीं करता। उसका 60 प्रतिशत से उपर विकलांगता प्रमाण प्रत्र भी बनाया जा चुका है लेकिन कमी है तो आधार कार्ड की। सब अधिकारी कर्मचारी वहीं आकर अटक जाते है कि आधार के बगैर पेंशन स्वीकृत नहीं कि जा सकती। उसके पिता दो साल से बार बार इसके लिए आवेदन कर रहे हैं लेकिन हर बार आवेदन गुम हो जाता है।
पति ने दूसरी शादी कर ली
शांति बताती है कि तकरीबन १५ साल पहले उसकी शादी राजसंमद जिले के उपखंड रेलमगरा के गांव बैठुम्बी के गिरधारी के साथ हुई थी। कुछ समय तक सब ठीक रहा लेकिन उसके विकलांग होने के कारण पति ने भी धीरे धीरे आना कम कर दिया और दूसरी शादी कर ली। शांति का कहना है कि ठीक होकर एक बार फिर से अपना घर बसाना चाहती है लेकिन इलाज नहीं हो पाने के कारण एेसा संभव नहीं हो पा रहा है।
कहते हैं कि बच्चे बुढ़ापे में मां बाप का सहारा होते हैं लेकिन यहां शांति की मां २४ घंटे शांति की देखभाल कर रही है वहीं उसके विकलांग पिता जैसे तैसे जुगाड़ कर अपने परिवार की गुजर बसर कर रहे हैं। प्रशासनिक निष्क्रियता के कारण न तो शांति का इलाज हो पा रहा है और ना ही शांति को उसकी पहचान मिल पा रही है। अब शांति और उसके परिवार को इंतजार है कि प्रशासन के जागने का जिससे शांति का आधार कार्ड बन सके और उसका इलाज संभव हो सके।
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