एसएमएस मेडिकल कॉलेज के एमरेटस प्रोफेसर डॉ. अशोक पनगडिय़ा के निर्देशन में हुए शोध में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। डॉ. पनगडिय़ा के निर्देशन में डॉ. भावना शर्मा, डॉ. मोनिका राठौड़, डॉ. पारुल दुबे, डॉ. विपिन सतीजा और डॉ. लीना मंगलानी ने करीब सात महीने में यह शोध किया। ‘प्रिविलेंस, डेमोग्राफिक प्रोफाइल, एंड साइकोलोजिकल आस्पे€ट ऑफ एपीलेप्सी इन नॉर्थ वेस्टर्न इंडिया विषय पर हुआ यह शोध इंटरनेशनल जर्नल्स एनल्स ऑफ न्यूरोसाइंसेज में भी प्रकाशित हो चुका है।
रिसर्च में जयपुर जिले के साथ ही शाहपुरा, जमवारामगढ़, बस्सी, चाकसू, गोविंदगढ़, दूदू तहसील के 344802 लोगों को शामिल किया गया। इस दौरान 60 हजार घरों में मिर्गी के 380 मरीज (304 ग्रामीण व 76 शहरी) पाए गए। शोध में पाया गया कि एक हजार की पॉपुलेशन पर 1.1 प्रतिशत लोगों में मिर्गी रोग मिला। 71 प्रतिशत मरीज गरीब तबके के थे जो इलाज अफोर्ड नहीं कर सकते थे। 38 प्रतिशत ने आर्थिक अभाव के चलते इलाज बीच में छोड़ दिया।
शोधकर्ताओं ने बताया कि उक्त मरीजों में से केवल पुरुषों का ही इलाज क रवाया जा रहा था। वहीं, शोधकर्ताओं का कहना है कि 15 प्रतिशत लोग मानते हैं इस रोग का इलाज नहीं होता, 85 प्रतिशत लोगों ने इलाज के लिए हामी भरी। 74 प्रतिशत मानते हैं कि यह छूत की बीमारी नहीं है। 80 प्रतिशत लोग मानते हैं कि मिर्गी के मरीज से शादी नहीं करना चाहेंगे। शोध में पाया कि 40 प्रतिशत लोग ऐसे थे जो मिर्गी की पहचान होने के बाद न्यूरोलॉजिस्ट से ही इलाज करवा रहे थे।