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Navratri 2018: मां कात्यायनी का है नवरात्रि का छठा दिन, जानें क्या है व्रत कथा और पूजन विधि

Navratri 2018: नवरात्रि के छठे दिन की जाती है मां कात्यायनी की पूजा, इस मंत्र के जाप से जीवन में फैलेगा प्रकाश, जानें क्या है पूजा का विधान…

जयपुरMar 22, 2018 / 12:36 pm

rajesh walia

Katyayani Devi Puja Vidhi: चैत्र नवरात्रि पर्व भारतवर्ष में हिंदुओं का प्रमुख पर्व है। आदि शक्ति दुर्गा की अराधना का पर्व चैत्र नवरात्र 18 मार्च से शुरू हो चुके है। Navratri 2018 के पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कुष्मांडा और पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में से छठवां रूप है। नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। वहीं शास्त्रों के अनुसार देवी ने कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए। चार भुजा धारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं।
 

पौराणिक कथा

देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार देवी कात्यायनी देवताओं, ऋषियों के संकटों को दूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न हुईं। महर्षि कात्यायन ने देवी पालन पोषण किया। जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलाई।
माना जाता है कि महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की, दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया ओर देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।

पूजा विधि

नवरात्रों के छठे दिन प्रात: जल्दी उठ स्नान कर देवी कात्यायनी का ध्यान करना चाहिए। इसके पश्चात पहले दिन की तरह कलश और उसमें उपस्थित सभी देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। कलश पूजा के बाद देवी कात्यायनी की पूजा कर शहद का भोग लगाना चाहिए। हाथों में पुष्प लेकर माता के ऊपर दिए गए मन्त्रों का जाप करते हुए उन पर पुष्प अर्पित करने चाहिए। देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए। मां कात्यायनी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करने के बाद फिर मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कात्यायनी सभी प्रकार के भय से मुक्त करती हैं। मां कात्यायनी की भक्ति से धर्म, अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। नवरात्र के छठे दिन लाल रंग के वस्त्र पहनें। यह रंग शक्ति का प्रतीक होता है।

मां को शहद का भोग प्रिय है

षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।

देवी कात्यायनी का मंत्र

सरलता से अपने भक्तों की इच्छा पूरी करने वाली मां कात्यायनी का उपासना मंत्र है:
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना,
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि।
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