जयपुर

राजस्थान समेत पूरे देश में प्रसिद्ध है देवी का ये मंदिर, लोगों में है ऐसी मान्यता कि माता ने राजा से रूठ कर ली थी टेढ़ी गर्दन, ये है पूरी कहानी

राजस्थान समेत पूरे देश में प्रसिद्ध है देवी का ये मंदिर, लोगों में है ऐसी मान्यता कि माता ने राजा से रूठ कर ली थी टेढ़ी गर्दन, ये है पूरी कहानी

जयपुरApr 06, 2019 / 06:47 pm

rohit sharma

sheela maata

जयपुर।
राजस्थान समेत पूरे देश में देवी आराधना का महापर्व नवरात्रि (Navratri 2019) शुरू हो गया है। धूमधाम से मनाया जाने वाले इस पर्व में नौ दिन तक देवी की आराधना की जाती है। वैसे तो 12 माह में चार बार नवरात्रि आती है। जिसमें दो आषाढ़ व माघ माह की नवरात्री गुप्त होती है वहीं चैत्र और आश्विन माह की नवरात्रि ज्यादा लोकप्रिय है। पूरे देश में नवरात्रि की पूजा अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार होती है। पूरे देश में हर मंदिर में नवरात्रि पर घरों और मंदिरों में घट स्थापना होती है। इसी के साथ राजस्थान समेत देश में कई ऐसे देवी के मंदिर भी हैं जहां की मान्यता बहुत अधिक है।
 

नवरात्रि के पावन अवसर पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं आमेर की शिला देवी मंदिर (Shila Mata Mandir (Amber Fort) के बारे में जिनकी मान्यता राजस्थान समेत पूरे देशभर में है। जयपुर शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर आमेर महल के प्रांगण में स्थित शिला देवी जयपुरवासियों की आराध्य देवी बन गई है। हर साल नवरात्रि में यहां मेला लगता है और देवी के दर्शनों के लिए हजारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
 

शिला देवी के मंदिर में अंदर जाने पर सबसे पहले आकर्षण का केंद्र यहां का मुख्य द्वार है जो चांदी का बना हुआ है। इस पर नवदुर्गा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि एवं सिद्धिदात्री उत्कीर्ण हैं। दस महाविद्याओं के रूप में काली, तारा, षोडशी, भुनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर, भैरवी, धूमावती, बगुलामुखी, मातंगी, और कमला चित्रित हैं। दरवाजे के ऊपर लाल पत्थर की गणेशजी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर में कलात्मक संगमरमर का कार्य महाराजा मानसिंह द्वितीय ने 1906 में करवाया था।
 

कई पुराने लोगों में मान्यता है कि शिला देवी जयपुर के कछवाहा राजपूत राजाओं की कुल देवी रही हैं। कहते हैं कि आमेर में पहले मीणाओं का राज हुआ करता था। साथ ही मीणाओं की कुलदेवी हिंगला देवी की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
 

शिला देवी मूलतः अम्बा माता का ही रूप हैं एवं कहा जाता है कि आमेर या आंबेर का नाम इन्हीं अम्बा माता के नाम पर ही अम्बेर पड़ा था जो कालान्तर में आम्बेर या आमेर हो गया। माता की प्रतिमा एक शिला पर उत्कीर्ण होने के कारण इसे शिला देवी कहा जाता है।
 

शिला देवी मंदिर की विशेषता

मंदिर की खास विशेषता है कि प्रतिदिन भोग लगने के बाद ही मन्दिर के पट खुलते हैं। साथ ही यहां विशेष रूप से गुजियां व नारियल का प्रसाद भी चढ़ाया जाता है।
 

राजा को मिला था जीत का वरदान (Shila Mata Mandir History in Hindi)

मंदिर के प्रवेश द्वार पर पुरातत्वीय ब्यौरा मिलता है जिसके अनुसार शिला देवी की मूर्ति को राजा मानसिंह बंगाल से लाए थे। मुगल बादशाह अकबर ने उन्हें बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया था। तब उन्हें वहां के तत्कालीन राजा केदार सिंह को हराने भेजा गया। कहा जाता है कि केदार राजा को पराजित करने में असफल रहने पर मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय हेतु उस देवी प्रतिमा से आशीर्वाद मांगा। इसके बदले में देवी ने स्वप्न में राजा केदार से अपने आपको मुक्त कराने की मांग की। इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और मानसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और आमेर में स्थापित किया। कुछ अन्य लोगों के अनुसार राजा केदार ने युद्ध में हारने पर राजा मानसिंह को ये प्रतिमा भेंट की थी।
 

साथ ही एक अन्य मान्यता भी है माता की मूर्ति बंगाल के समुद्र तट पर राजा को मिली थी और राजा मानसिंह इसे समुद्र में से निकालकर सीधे आमेर किले पर लाये थे। यह मूर्ति शिला के रूप में ही थी और काले रंग की थी। राजा मानसिंह ने इसे आमेर लाकर इस पर माता का विग्रह रूप शिल्पकारों से बनवाया एवं इसकी प्राण प्रतिष्ठा करवायी।
 

 

माता की प्रतिमा का चेहरा टेढा होने पर मान्यता (Shila Mata Mandir Story in Hindi)

देवी को लेकर पौराणिक मान्यता ये भी है कि पहले माता की मूर्ति पूर्व की ओर मुख किये हुए थी। जयपुर शहर की स्थापना किए जाने पर इसके निर्माण में कार्यों में अनेक विघ्न उत्पन्न होने लगे। तब राजा जयसिंह ने कई बड़े पण्डितों से विचार विमर्श कर उनकी सलाह अनुसार मूर्ति को उत्तराभिमुख प्रतिष्ठित करवा दिया, जिससे जयपुर के निर्माण में कोई अन्य विघ्न उपस्थित न हो, क्योंकि मूर्ति की दृष्टि तिरछी पढ़ रही थी। तब इस मूर्ति को वर्तमान गर्भगृह में प्रतिष्ठित करवाया गया है, जो उत्तराभिमुखी है। यह मूर्ति काले पत्थर की बनी है और एक शिलाखण्ड पर बनी हुई है।
 

शिला देवी की यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी के रूप में बनी हुई है। सदैव वस्त्रों और लाल गुलाब के फूलों से ढंकी मूर्ति का केवल मुहँ व हाथ ही दिखाई देते है। मूर्ति में देवी महिषासुर को एक पैर से दबाकर दाहिनें हाथ के त्रिशूल से मार रही है। इसलिए देवी की गर्दन दाहिनी ओर झुकी हुई है। यह मूर्ति चमत्कारी मानी जाती है।
 

वहीं एक अन्य पौराणिक मान्यता यह भी है कि शिला माता की प्रतिमा का चेहरा कुछ टेढा है। इस के पीछे एक कहानी प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि मंदिर में कई सालों पहले तक देवी को नर बलि दी जाती थी। लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने नरबलि की जगह पशु बलि दे दी। जिससे माता रुष्ठ हो गयी और गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ ली। तभी से प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है। वहीं मंदिर में 1972 तक पशु बलि दी जाती थी, लेकिन जैन धर्मावलंबियों के विरोध के चलते यह भी बंद कर दी गई।

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