जयपुर

इंद्र के नंदन वन जैसी खूबसूरत थी जयपुर की वनश्री

संस्कृत विद्वान भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने सघन हरियाली से आच्छादित जयपुर की वनश्री को इन्द्र के नंदनवन जैसा उपवन बताया।

जयपुरDec 16, 2019 / 12:05 am

अभिषेक व्यास

इंद्र के नंदन वन जैसी खूबसूरत थी जयपुर की वनश्री

जयपुर। अरावली की पहाडिय़ों से घिरे जयपुर के जंगल में पहले आम आदमी का कोई दखल नहीं रहता था। जयपुर वैभवम् ग्रंथ में संस्कृत विद्वान भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने सघन हरियाली से आच्छादित जयपुर की वनश्री को इन्द्र के नंदनवन जैसा उपवन बताया। वन्य जीवों के साम्राज्य रहे अभयारण में शेरनी, बाघिन, हरिण, भालू, तेंदुआ आदि मादा जानवरों के शिकार पर कड़ा प्रतिबंध रहा। जयपुर में शिकार करने पर खासी दिलचस्पी रखने वाले अंग्रेजों को भी मादा जानवर का शिकार करने नहीं देते। शिकार के समय नर व मादा की पहचान रखने के जानकार लोग साथ रहते और मादा को मारने से बचा देते।
सन् 1876 में इंग्लैंण्ड के प्रिंस एल्बर्ट ने झालाना में गलती से मादा शेरनी को गोली मार दी। शेरनी ने दूर जाकर दम तोड़ दिया, तब उसके दो शावकों को ढूंढ कर रामनिवास बाग के जू में रखा गया। सियाशरण लश्करी के मुताबिक जानवरों का प्रजनन बढ़ाने के मकसद से मादा को बचाया जाता रहा। सन् 1948 तक जयपुर में शेर, बघेरे, बारहसिंगा, चीता, भालू, सियार, हरिण आदि वन्यजीव रहे। चिडिय़ाघर और रामगंज के नाहरवाड़ा में हिंसक जानवरों की रात को दहाड़ सुनते रहे। जूनागढ़ नवाब के भेजे सफेद शेरों के जोड़े को देखने में बच्चों की खासा दिलचस्पी रहती। सवाई रामसिंह के समय तेंदुओं की बढ़ी तादाद पर अंकुश लगाने के लिए एक तेंदुए को मारने की एवज में पांच रुपए दिए जाने लगे। गुरु पूर्णिमा की रात में वन्यजीवों की गिनती होती।
नाहरगढ़ अभयारणय में आदमखोर बने शेर से शहर में हड़कंप मच गया। तीन तरफ के जंगल को खातीपुरा, गलता, नाहरगढ़ और खातीपुरा में बांट रखा था। खातीपुरा लबी छलांग लगाने वाले हरिण रहे। देवेन्द्र भगत के अनुसार सवाई रामसिंह ने दुर्लभ प्रजाति के हरिणों के शिकार पर रोक लगाई और मारने वाले पर राजद्रोही जैसा दंड दिया जाता। जहां वन्यजीव ज्यादा होते उस जंगल में ही शिकार की इजाजत दी जाती। घाट की गूणी, झालाना, नाहरगढ़ आमागढ़, नागतलाई, कूकस और गलता प्रभातपुरी की खोल, नाहरीकानाका, विश्वकर्मा आदि पहाड़ों से झरने बहते और वन्यजीव स्वच्छंद विचरण करते। वन्यजीवों के कारण शहर के दरवाजे रात को बंद कर दिए जाते। वर्ष 1941 में अंंग्रेजों ने जयपुर के जंगली जानवरों का संरक्षण करने के लिए नियम बनाए। ऐसे में जंगलात की इजाजत बिना शिकार नहीं कर सकते थे।
-जितेन्द्र सिंह शेखावत की रिपोर्ट

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