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विपरीत मौसम से लड़ने वाली किस्मों के विकास की जरूरत

locationजयपुरPublished: Aug 27, 2018 07:59:15 pm

Submitted by:

Ashish

विपरीत मौसम से लड़ने वाली किस्मों के विकास की जरूरत

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विपरीत मौसम से लड़ने वाली किस्मों के विकास की जरूरत

जयपुर
विश्व में 71 फीसदी चना का उत्पादन भारत में होता है। इसे गरीबों की दाल भी कहा जाता है। ऐसे में चने की ऐसी किस्मों को विकसित करने की जरूरत है जो कि सर्दी, गर्मी और सूखे की स्थितियों में अनुकूल हो। चना उत्पादन बढ़ाने के लिए जमीन में नमी के संरक्षण को बनाए रखने की दिशा में अनुसंधान की भी जरूरत है। नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र के उद्यानिकी एवं फसल विज्ञान के उपमहानिदेशक डॉ ए.के.सिंह ने यह बात सोमवार को दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान में शुरू हुई तीन दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में कही।
इस दौरान उन्होंने कहा कि देश में चने की 68 फीसदी खेती बारानी क्षेत्रों में की जाती है। जहां मिट्टी में नमी का संरक्षण बड़ी समस्या है। इस दौरान उन्होंने चने की फसल में खाद्य प्रसंस्करण, मूल्य सवंर्धन और विपणन पर विषेष ध्यान देने की बात भी कही। इसके साथ ही चना फसल पर विशेष कार्य योजना बनाने और इसकी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए लिए भी कहा। कार्यशाला में देशभर से कृषि वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं। कार्यशाला का आयोजन जोबनेर के श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और कानपुर स्थित अखिल भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान की ओर से किया जा रहा है। कार्यशाला में चने की विभिन्न किस्मों के साथ ही नवाचारों पर चर्चा की गई। चना की बेहतर किस्म के लिए किए जा रहे अनुसंधान कार्यों के परिणामों को भी कृषि वैज्ञानिकों ने प्रदर्शित किया।
तीन गुना से ज्यादा उत्पादन बढ़ा
देश में वर्ष 1950-51 में चने का उत्पादन 3.65 मिलियन टन था जो 2017-18 में बढ़कर 11.16 मिलियन टन हो गया है। राजस्थान देश में चने का दूसरा बड़ा उप्पादक राज्य है। कार्यशाला में आईसीएआर के पौध संरक्षण, तिलहन व दलहन अनुभाग के सहायक निदेशक डॉ.पी.के.चक्रवर्ती,
कानपुर स्थित अखिल भारतीय दलहन अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ.एन.पी.सिंह, डॉ.वी.के. यादव समेत अन्य ने चना किस्मों के विकास में किए जा रहे अनुसंधान कार्यों की जानकारी दी।
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