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नाटक विधा पर अधिक लेखन की आवश्यकता: भोगीलाल पाटीदार

locationजयपुरPublished: Apr 11, 2021 06:13:54 pm

Submitted by:

Rakhi Hajela

फेसबुक पर ‘आखर पोथी’ कार्यक्रमप्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से आयोजित कार्यक्रम

नाटक विधा पर अधिक लेखन की आवश्यकता: भोगीलाल पाटीदार

नाटक विधा पर अधिक लेखन की आवश्यकता: भोगीलाल पाटीदार

जयपुर, 11 अप्रेल
रचनाकार का पहला कर्तव्य मानवता को बचाने का प्रयास है। लेखक ने नाटक लेखन के माध्यम से यही प्रयास किया है। यह विचार लेखक भोगीलाल पाटीदार ने आज ‘आखर पोथी’ कार्यक्रम में व्यक्त किए। प्रभा खेतान फाउंडेशन (Prabha Khaitan Foundation) की ओर से ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन (Grassroots Media Foundation) के सहयोग से आखर राजस्थान के फेसबुक पेज पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में साहित्यकारों ने ‘हिजरतु वन’ नाटक संग्रह पुस्तक का विमोचन किया और अपने अपने विचार प्रकट किए।
अपने अनुभव साझा करते हुए पुस्तक के लेखक भोगीलाल पाटीदार ने कहा कि, मैं बचपन से ही घटता वन क्षेत्र देख रहा हूं। आधुनिकता के जमाने में गरीब अमीर की खाई, सामाजिक कुरीतियां, अंध विश्वास, घटता लिंगानुपात आदि पर लेखन किया है। इस नाटक संग्रह पुस्तक के लेखन का मुख्य उद्देश्य यही है कि लोगों में जागरुकता आए और पेड़ों की पीड़ा जाने तथा लोग पर्यावारण के प्रति अधिक संवेदनशील बने।
राजस्थानी में लिखित नाटक की कमी
हिजरतु वन पुस्तक की प्रस्तावना में साहित्यकार एवं रंगकर्मी सतीश आचार्य ने बताया कि लोक नाट्य पंरपरा को ग्रामीण कलाकारों ने जीवित रखा है। साथ ही जनमानस को शिक्षित किया है। राजस्थानी में नाटक की लंबी परंपरा रही है। जो नाटक जनता के मन की और उनके जीवन की बात करे वही सार्थक है।
कला समीक्षक एवं चित्रकार चेतन औदिच्य ने बीज कहा कि, राजस्थानी भाषा में नाटक लेखन बहुत कम है। इस पोथी के 6 नाटक मंच पर प्रस्तुत किए जा सकते हैं। यह नाटक समाज की समस्याओं को सामने लाते हैं। राजस्थानी में लोक और शास्त्रीय रूप से नाटक हुए हैं। नाटक में प्रस्तुति रूप सबल होने से नाटक चलते आए हैं। मराठी, बंगाली और उडिय़ा से तुलना करें तो राजस्थानी में लिखित नाटक की कमी है।
पुस्तक की समीक्षा करते हुए साहित्यकार एवं रंगकमी हरीश बी. शर्मा ने कहा कि राजस्थान ही नहीं देशभर में नाट्य आलोचना और समीक्षा में अकाल दिखता है। राजस्थानी नाटक लेखन और मंचन में काफी संभावनाएं है। हिजरतु वन में मोती सी चमक है। लेखक पाटीदार ने बाल रंगमंच को भी समृद्ध करने का प्रयास किया है। नाटक आज की पीढी को रंगमंच से जोडने की कडी साबित हो सकता है। इस पुस्तक के नाटक भले ही छोटे हैं लेकिन सफल साबित हो सकते हैं। रचनाकार का पहला कर्तव्य मानवता को बचाने का प्रयास है। लेखन ने नाटक लेखन के माध्यम से यही प्रयास किया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार कुंदन माली ने कहा कि ऐसे जटिल समय में राजस्थानी नाटक का छपना आनंद और आश्चर्य की बात है। राजस्थानी में नाटकों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। रचनाकार चाहे तो समाज को संदेश भी दे सकता है और मनोरंजन भी कर सकता है। वर्तमान समय में लेखक भोगीलाल की पहल धन्यवाद की पात्र है। अंत में अंत में ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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