शोध के मुख्य लेखक डॉ निमाह निक का कहना है कि धुंए के कारण बजने वाला अलार्म बच्चों को नींद से जगाने के लिए काफी नहीं है। इस शोध के तहत टीम ने 640 बच्चों के साथ काम किया ताकि पता लगा सकें कि एक स्टैंडर्ड फायर अलार्म बच्चों को नींद से जगा पाता है या नहीं। प्रयोग के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्यादातर बच्चे अलार्म बजने के दौरान सोते रहे, जबकि जो जागे भी वह कुछ देर बाद वापस नींद के आगोश में चले गए।
एक टेलीविजन शो में भी यह प्रयोग दिखाया गया, जिसमें आठ साल तक के 10 बच्चों को शामिल किया गया, इनमें से नौ बच्चे तो अलार्म बजने के दौरान सोते रहे, जबकि एक कुछ देर के लिए जागा और दोबारा सो गया। हालांकि इस शोध में एक अच्छी बात यह भी सामने आई कि जब अलार्म को धीमी आवाज में, दूसरे टोन में या फिर रिकॉर्ड किए गए संदेश के साथ बजाया गया तो 75 प्रतिशत बच्चों की नींद खुल गई।
निक ने कहा, इस शोध के दौरान हमने कुछ ऐसी आवाजों की खोज की है जो बच्चों को नींद से जगाने में सहायक रही हैं। अब हमारी कोशिश है कि फायर अलार्म के लिए ये आवाजें ही विकसित की जाएं ताकि बच्चों की सुरक्षा को लेकर हम निश्चिंत हो सकें।