स्मृति शेष: कोटा मुशायरे में शरीक हुए थे निदा फाजली, तब शायराने अंदाज में भारत-पाक विभाजन क्या कहा…जानिए अभी
जयपुरPublished: Feb 09, 2016 02:19:00 pm
ख्यातनाम शायर निदा फाजली कोटा भी आए थे। यहां दशहरा मेले के मुशायरे में
शरीक हुए। 2008 में विजयश्री रंगमंच से उन्होंने कभी किसी को मुकम्मल जहां
नहीं मिलताÓ शेर सुनाया। कोटा यात्रा के दौरान उन्होंने भारत-पाक के विभाजन
से लेकर तत्कालीन राजनीति तक का जिक्र किया था।
ख्यातनाम शायर निदा फाजली कोटा भी आए थे। यहां दशहरा मेले के मुशायरे में शरीक हुए। 2008 में विजयश्री रंगमंच से उन्होंने कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलताÓ शेर सुनाया। कोटा यात्रा के दौरान उन्होंने भारत-पाक के विभाजन से लेकर तत्कालीन राजनीति तक का जिक्र किया था।
उन्होंने कहा था कि विभाजन मेरी शायरी का जनक है। उस दौरान हुए राजनीतिक दंगों के जख्मों ने मुझे शायरी की ओर धकेला। विवाद भाषा या धर्म का नहीं है, विवाद की जड़ है राजनीति। यही कारण है कि देश में हर बात मुद्दा बन जाती है।
ऐसे ही उर्दू और हिन्दी भी राजनीति का शिकार है। भाषा वही है जो आम आदमी समझ जाए, इसलिए मैं कबीर की सधुक्कड़ी को भाषा मानता हूं और उसी में लिखने का प्रयास करता हूं। मेरी भाषा न उर्दू है न हिन्दी।
उन्होंने कहा था कि बढ़ते आतंकवाद को धर्म विशेष से जोड़ा जाना गलत है। आतंकवाद हर देश की समस्या है। हर देश में इसके अलग-अलग रूप हैं, अलग समस्याएं हैं, अलग चेहरा है। लोग अपने धर्म से भटक रहे हैं। उसका महत्व नहीं समझ रहे हैं।
हम शायर केवल शब्दों से ही विचारों की अभिव्यक्ति कर सकते हैं। उन्होंने साक्षात्कार स्टेशन पर खत्म हुई, भारत तेरी खोज, नेहरू ने लिखा नहीं, कुली के सिर का बोझÓ शेर से समाप्त किया।