कोर्ट ने मामले में एमिकस क्यूरी वृंदा ग्रोवर से उनकी राय पूछी तो उन्होंने कहा कि शबनम केस में तय कानून के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में लंबित पुनर्विचार याचिका के लंबित रहने तक सुनवाई टाल दी जानी चाहिए। सरकार के वकील राजीव मोहन और इरफान रज्जाक ने इसका विरोध किया और कहा कि अब्दुल रज्जाक केस में तय कानून के अनुसार कोर्ट फांसी की सजा को अमल में लाए जाने का आदेश दे सकती है। क्योंकि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट तो फांसी के लिए तय की गई टाईम लाईन के आदेश पर कभी भी रोक लगा सकते हैं।
इसके अलावा अभियुक्त सीआरपीसी की धारा-४१५ के तहत कभी भी फांसी की सजा के लिए तय टाईम लाईन के आदेश में समय बढ़ाने के लिए कभी भी हाईकोर्ट जा सकते हैं । अभियुक्त फांसी लगाने के आदेश के खिलाफ केवल क्रिमिनल अपील ही कर सकते हैं ना कि एसएलपी या पुनर्विचार याचिका। कोर्ट ने उनकी दलील को मानने से इनकार कर दिया और अभियुक्त अक्षय की पुनर्विचार याचिका तय होने तक कोई आदेश नहीं देने पर सहमति जताई। दिसंबर २०१८ में निर्भया के माता-पिता ने पटियाला हाउस कोर्ट में चारों अभियुक्तों को दी गई फांसी की सजा पर अमल करने यानि फांसी देने की प्रक्रिया को तेजी से निपटाने के लिए अर्जी दायर की थी।