हमें अपनी इच्छाओं को सीमित रखना चाहिए। अधिक इच्छाएं दुख का कारण बनती हैं। संतोष करने की आदत हमें राहत और सुकून देती है। हमें आवश्यकता और इच्छा के अंतर को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। इस अंतर को समझकर हम अपना एक खास नजरिया ही नहीं बना सकते बल्कि हम जिंदगी में एक कसौटी तैयार कर सकते हैं। इच्छाएं तो हमारी कई तरह की हो सकती हैं लेकिन सवाल उठता है कि हमारे जरूरत क्या है। इस नजरिए से न केवल हम इच्छाओं के जंजाल में फंसने से बच सकते हैं बल्कि राहत भी महसूस कर सकते हैं।
दूसरों से तुलना की मानसिकता सेे भी आजकल लोग परेशान नजर आते हैं और दिमाग पर एक बोझ बनाए रखते हैं। ‘उसके पास इतना मेरे पास कम क्यों?’ की सोच को वह अपने दिमाग पर हावी रखता है। व्यक्ति को उपलब्ध साधनों का पूरा लुत्फ उठाना चाहिए बजाय हरदम दूसरों की तरफ देखकर दुखी रहने के। अभावों की जिंदगी में भी पॉजिटिव सोच बनाकर हम खुद को मानसिक रूप से मजबूत बनाए रख सकते हैं। जूते न होने पर दुखी रहने वाला शख्स भी यह सोचकर संतोष हासिल कर सकता है कि कई लोगों के तो जूते पहनने के लिए पांव ही नहीं होते।
एक कहावत हम सभी ने सुनी है कि उतने पैर पसारिए जितनी लंबी सौर। इस कहावत का हमारी जिंदगी में बहुत महत्व है। आजकल लोगों की बढ़ती इच्छाएं और दिखावे की सोच और उन इच्छाओं को पूरा करने के लिए कर्ज लेते रहने की आदत ने उन पर मानसिक बोझ लाद दिया है। बढ़ती इच्छाएं और बढ़ता कर्ज इंसान को मानसिक रूप से परेशान बनाए रखता है। इसलिए कोशिश करें कि हम अपनी जरूरतें दायरे में रहते हुए ही पूरी करें।
जिंदगी में योजना बनाने और उसके हिसाब से काम करने की आदत बना लें। यह आदत आपकी कई परेशानियों को हल कर देगी और आपके मानसिक बोझ को हल्का बनाए रखेगी। प्लानिंग चाहे सर्विस से जुड़े काम की हो या फिर घर-परिवार से जुड़े किसी काम की। इससे काम आसान हो जाता है और हम अव्यवस्था के चक्रव्यूह में फंसने से बच जाते हैं। प्लानिंग को अपनी आदत का हिस्सा बना लें। फिर देखिए आपके बड़े-बड़े काम भी कितने आसान हो जाएंगे।