जयपुर

किसी धर्म में उपासना के लिए लाउडस्पीकर आवश्यक नहीं-इलाहबाद हाईकोर्ट

(Allahabad Highcourt)इलाहबाद हाईकोर्ट ने दो मस्जिदों को अजान के लिए(Loud speakers) लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल की अनुमति देने से(Declined) इनकार करते हुए कहा है कि किसी भी धर्म में (Worshipping)उपासना या पूजा के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का कोई (Provison) प्रावधान नहीं है।

जयपुरJan 21, 2020 / 06:32 pm

Mukesh Sharma

किसी धर्म में उपासना के लिए लाउडस्पीकर आवश्यक नहीं-इलाहबाद हाईकोर्ट

जयपुर

(Allahabad Highcourt)इलाहबाद हाईकोर्ट ने दो मस्जिदों को अजान के लिए(Loud speakers) लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल की अनुमति देने से(Declined) इनकार करते हुए कहा है कि किसी भी धर्म में (Worshipping)उपासना या पूजा के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का कोई (Provison) प्रावधान नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि ना तो किसी धर्म में लाउडस्पीकरों और ढोल आदि के जरिए प्रार्थना करना सिखाया जाता है और ना ही एेसा जरुरी है। और यदि एेसी कोई प्रथा है तो इस प्रथा से ना तो दूसरों के अधिकार प्रभावित होने चाहिएं और ना ही अशांति होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट भी तय कर चुका है कि संविधान के अनुच्छेद-२५ और २६ के तहत अधिकार नैतिकता,हैल्थ और पब्लिक आर्डर की शर्तों पर ही हो सकते हैं।

एसडीओ ने नहीं दी थी अनुमति-

दरअसल ध्वनि प्रदूषण नियमों के तहत सार्वजनिक स्थानों पर प्रशासन की अनुमति के बिना लाउडस्पीकर या पब्लिक एड्रेस सिस्टम आदि का प्रशासन की अनुमति के बिना उपयोग नहीं हो सकता। यूपी क जौनपुर जिले के शाहगंज में एसडीओ ने दो मस्जिदों को अजान के लिए लाउडस्पीकर की अनुमति देने से इनकार कर दिया था और एसडीओ के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह उनकी धार्मिक परंपरा का अभिन्न अंग है और जनसंख्या में बढ़ोतरी के कारण लोगों को लाउडस्पीकर के जरिए प्रार्थना के लिए सूचना देना जरुरी हो गया है।

असीमित नहीं है धर्म की आजादी-
कोर्ट ने इस दलील को मानने से इनकार करते हुए कहा कि यह सही है कि संविधान के तहत सभी को अनुच्छेद-२५(१) के तहत अपने धर्म को मानने,प्रचार व प्रसार करने की आजादी है लेकिन, यह आजादी असीमित नहीं है। बल्कि इसे अनुच्छेद-१९ (१) (ए) के साथ पढ़कर सद्भावी अर्थ निकालना होगा। मस्जिदों वाले इलाके में हिन्दु-मुस्लिम की मिश्रित आबादी है और पहले भी कई बार एेसा हुआ है कि विवाद ने बड़े झगड़े का रुप ले लिया था। इसलिए यदि किसी भी पक्ष को लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की अनुमति दी गई तो दोनों पक्षों मंे तनाव बढऩे की आशंका होगी। प्रशासन की जिम्मेदारी है कि उनके एरिया में शांति और कानून-व्यवस्था बनी रहे और यदि कोई तनाव है तो उसे दूर करके शांति बनाई जाए इसलिए लाडडस्पीकर के इस्तेमाल की अनुमति नहीं देने का प्रशासन का फैसला सही है।

हिन्दुस्तान में नहीं है जागरुकता-

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ध्वनि प्रदूषण और इससे आमजन की हैल्थ को होनेे वाली समस्याओं पर भी चर्चा की और कहा है कि भारत में अभी तक लोग ध्वनि प्रदूषण को प्रदूषण ही नहीं मानते हैं और ना ही उन्हें इससे स्वास्थ्य पर होने वाले विपरीत प्रभावों की जानकारी है। जबकि अमेरिका सहित इंग्लैंड और कई देशों में आमजन ध्वनी प्रदूषण को लेकर इतने सतर्क हैं कि वह कार के हार्न तक नहीं बजाते। भौपूं की तरह हार्न बजाने को वहां अशिष्टता माना जाता है क्यों कि इससे ना केवल दूसरों को परेशानी होती है बल्कि यह पर्यावरण और दूसरों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में शांति और आराम से रहने का अधिकार है। अनुच्छेद १९ (१) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है और कोई भी व्यक्ति मूलभूत अधिकार के जरिए अपने भाषण या संवाद से ध्वनि प्रदूषण फैलाकर दूसरों के मूलभूत अधिकार उल्लंघन नहीं कर सकता। अब पूरी दुनिया में यह स्वीकार किया जा चुका है कि ध्वनि प्रदूषण से इंसानी स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव होता है और इससे सुनने की क्षमता कम होना या बहरापन,हाइ ब्लडप्रेशर,डिप्रेशन,थकान और चिड़चिड़ापन होता है। तेज आवाज के कारण ह्रदय संबंधी बीमारियों के साथ ही विक्षिप्तता और नर्वस ब्रेकडाउन जैसी बीमारियां होती हैं।

Home / Jaipur / किसी धर्म में उपासना के लिए लाउडस्पीकर आवश्यक नहीं-इलाहबाद हाईकोर्ट

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.