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खिलाड़ी ही नहीं पोलो में घोड़े तय करते है हार हार-जीत

locationजयपुरPublished: Jan 28, 2020 10:12:04 am

Submitted by:

HIMANSHU SHARMA

खेल में 80 से 85 प्रतिशत योगदान घोड़ो का

Not only players decide horses in polo, defeat and win

Not only players decide horses in polo, defeat and win



जयपुर
जयपुर में इन दिनों पोलो सीजन चल रहा हैं। पोलो के खेल में घोड़ो का भी अहम योगदान होता हैं। इस खेल में खिलाड़ी ही नहीं बल्कि हार या जीत घोड़े तय करते हैं। यह बात खुद खिलाड़ी भी स्वीकार करते है कि पोलो के खेल में उनके साथ साथ घोड़े भी खेलते हैंं। खेल में खिलाड़ी के साथ घोड़े का योगदान 80 से 85 प्रतिशत तक रहता हैं।
घोड़े की स्पीड,रुकना,मुडना और टेक ऑफ करना अहम
हाल ही में खेले गए भवानी सिंह कप में चांदना स्पायरो ने जीत हासिल की। चांदना स्पायरो की जीत में अहम योगदान निभाने वाले खिलाड़ी ध्रुवपाल गोदारा ने बताया कि घोड़े का खेल में बहुत अहम रोल होता हैं। घोड़े का एक खराब सैकंड मैच से टीम को बाहर कर सकता हैं। इसलिए घोड़ के लिए उनकी ट्रेनिंग बहुत जरुरी हैं। ध्रुवपाल कहते है कि मैदान में घोड़े की स्पीड सबसे अहम हैं। लेकिन उसी स्पीड में उसका कंट्रोल भी बहुत जरुरी हैं। जो खिलाड़ी के कमांड को समझ कर उसी स्पीड में रुके,फिर दाएं या बाएं मुडना और फिर से टेक ऑफ करने जैसी खासियत इस खेल में खेलने वाले घोड़े की होनी चाहिए। वहीं घोड़े का चतुर, अनुशासित और संवेदनशील होना भी अनिवार्य हैं।
जयपुर में जल्द नई पोलो एकेडमी
जयपुर पोलो सीजन में स्पायरो ने चांदना ग्रुप के साथ मिलकर टीम उतारी। इस टीम में खेल मंत्री अशोक चांदना खुद खेलते हैं। स्पायरो के कौशल डोडा ने बताया कि वह अन्य खेलों की तरह पोलो के खेल को भी प्रसिद्ध करना चाहते हैं। इसके लिए वह जयपुर में जल्द ही एक नई अकादमी लेकर आएंगे। जहां पर उनके खुद के घोड़े होंगे। वह यह मिथ खत्म करेंगे कि यह सिर्फ राजा महाराजाओं का ही खेल है और अन्य युवाओं को भी पोलो से जोड़ेगे। युवाओं की नई ट्रेनिंग अकादमी के लिए वह जमीन तलाश रहे हैं। जहां उनके पास खुद के घोड़े होंगे। जिन्हें वह अपने हिसाब से ट्रेड करेंगे।
अर्जेंटीना,इंग्लैंड और न्यूजीलैंड से आ रहे घोड़े
खिलाड़ियों का कहना है कि पहले रेस कोर्स से घोड़े आते थे। लेकिन अब अर्जेंटीना,इंग्लैंड और न्यूजीलैंड से घोड़े मंगवाकर टीम उन्हें मैदान में खेलने के हिसाब से तैयार कर रही हैं। एक घोड़ा समान्यतया नौ वर्ष की आयु तक खेलने के काम आता है। दो वर्ष का होने के बाद इसका प्रशिक्षण शुरू कर दिया जाता है। सबसे पहले इसे ब्रेक डाउन, यानी सवारी के लिए तैयार किया जाता है। सवारी के लिए
तैयार होने के बाद सवार अकेला ही इसे तेज गति से दौड़ाते हुए एकदम से धीमे करने के साथ ही मुड़ने का प्रशिक्षण देता है। इस कार्य में छह माह लग जाते हैं। बाजार में 3 से लेकर 30 लाख रुपए तक के घोड़े मिलते हैं। इसके बाद इसके प्रशिक्षण से लेकर खेलने तक में खर्चा आता है। क्योकि घोड़े के मूड के अनुसार ही उसे प्रशिक्षण दिया जा सकता है। वहीं इनके खाने का भी विशेष ध्यान रखा जाता हैं। हरे चारे के अलावा घोड़े को नियमित रूप से चना, जौ,चोकर खिलाया जाता है। अतिरिक्त विटामिन के लिए उसे अलसी व सोयाबीन की डाइट भी दी जाती है।
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