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जयपुर

नोटबंदी की कहानी…अदूरदर्शिता की निशानी

नोटबंदी की कहानी…अदूरदर्शिता की निशानी

जयपुरAug 31, 2018 / 06:22 pm

rajendra sharma

notebandi

बैंकों के बाहर में लगी कतारें

आखिर नोटबंदी के परिणाम सामने आ ही गए। रिजर्व बैंक ने अंतत: जमा हुए नोटों की गणना करके जो बताया वह चौंकाने वाला साबित हुआ। केंद्रीय बैंक ने बताया कि नोटबंदी के दिन जितनी मुद्रा देश में चलन में थी उसमें से 99.3 प्रतिशत जमा हो गई। यानी कालाधन के नाम पर जो दावे किए जा रहे थे, खोखले साबित हुए। पीएम मोदी और उनके सिपहसालारों ने खम ठोक कर कहा था कि पूंजीपतियों का 3 से 4 लाख करोड़ का कालाधन चलन से बाहर हो जाएगा। हुआ क्या! उलटे जो और जितना कुछ काला था वह भी सफेद हो गया।
याद करें प्रधानमंत्री मोदी ने 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे अचानक सभी न्यूज चैनलों पर एलान किया था कि 500 और 1000 के नोट बंद किए जाते हैं।
उन्होंने इसके फायदे गिनाए थे कि कालाधन, आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और डिजिटलाइजेशन में वृद्धि होगी। हासिल हुआ क्या! आईने की मानिंद साफ हो गया। देखें दावावार परिणाम—
आतंकवाद : जिस दिन नोटबंदी लागू हुई यानी 8 नवंबर 2016 को खत्म हुए साल में 155 बड़ी आतंकी घटनाएं हुई थी, जबकि उसके बाद एक साल में यानी नवंबर 2017 तक 184 आतंकी हमले हुए; इसके बाद आतंकी 31 जुलाई 2018 तक ही 191 घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं।
कालाधन : नोटबंदी से कालाधन पर लगाम लगने वाली बात तो इस तथ्य से ही खोखली साबित हो गई कि 99.3 फीसदी मुद्रा जमा हो गई; जो दशमलव 7 प्रतिशत बचा वह 10 हजार 720 करोड़ है। खास बात यह है कि उसमें नेपाल, भूटान आदि देशों में बचे हुए और ऐसे हजारों लोगों के पुराने नोट शामिल हैं, 31 मार्च 2017 तक लाइनों में लगने के बाद भी 31 दिसंबर 2016 गुजरने के बाद मिले अपने पुराने नोट जमा नहीं करवा सके। यानी न कालाधन आया, न दावा सही साबित हुआ।
भ्रष्टाचार : देश में फैले भ्रष्टाचार को प्रधानमंत्री ने दीमक बताते हुए उस पर लगाम लगाने की जो बात कही, उसका सच यह है कि भारत 2016 में विश्व के भ्रष्ट देशों की सूची में जहां 79 वें स्थान पर था, 2017 में 81 वें स्थान पर पहुंच गया, यानी भ्रष्टाचार में वृद्धि हो गर्ई। यह नोटबंदी के कारण नहीं, बल्कि नोटबंदी के बाद हुई।
डिजिटलाइजेशन : डिजिटलाइजेशन की बात करें तो सरकार तो दावा कर रही है कि 40 फीसदी बढ़ा है, तो दूसरी तरफ इस दावे के विरुद्ध तर्क दिया जा रहा है कि जब बैंकों में ट्रांजेक्शन पर इतने चार्ज लगा दिए गए कि बैंकों में हतोत्साहित लोगों की जमा राशि घटी या एक—दो ट्रांजेक्शन में ही निकाल दी गई, तो आॅनलाइन पैमेंट यानी डिजिटलाइजेशन कैसे बढ़ा! और मान भी लें कि सरकार का दावा सही है तो क्या सिर्फ इसके लिए नोटबंदी लगाकर 125 करोड़ लोगों को कतारों में लगाया गया था।
बीजेपी पहले तो खिलाफ थी नोटबंदी के—
बीजेपी जब विपक्ष में थी, तब यूपीए—2 की मनमोहन सरकार ने नोटबंदी के लिए प्रस्ताव तैयार किया था, जिसका बीजेपी ने जमकर विरोध किया था, फलस्वरूप प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। उन्हीं विरोध करने वालों को अचानक ऐसा क्या दिख गया नोटबंदी में कि उसे अचानक और रातोंरात लागू कर दिया!
जाहिर है, अदूरदर्शिता…अनुभवहीनता…अज्ञानता जैसे अवगुण जब एक निर्णय में परीलक्षित होते हैं, तो उसका खमियाजा तमाम पक्षों को भुगतना पड़ता है। मोदी सरकार बने चार साल हुए। सरकार दो मर्तबा काम करती दिखी, एक तो नोटबंदी के समय और दूसरे जीएसटी लागू करते वक्त। मगर, दुर्भाग्य से दोनों बड़े फैसलों में ये तीनों अवगुण तब प्रकट हुए जब इनके नियमों में बार-बार बदलाव करने पड़े।
70 बार बदले नियम—
नोटबंदी को ही लें, 50 दिन का समय मांगा था, अलबत्ता इन 50 दिनों में नियम 70 बार बदल दिए गए। आलम यह था कि एक नियम समझ आता, तब तक दूसरा आ जाता। प्रधानमंत्री मोदी ने 50 दिन में जो सपनों का भारत देने का वादा किया था, वह तो दूर की कौड़ी साबित हो गया।
सरकार पर अपनों के प्रहार—
याद करें उन दिनों बीजेपी नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने वर्तमान वित्त मंत्री अरुण जेटली को गुजरात की जनता के लिए बोझ बताया था। इतना ही नहीं, उन्होंने यहां तक कह डाला कि जीएसटी और नोटबंदी में जैसी गड़बडिय़ां हुई हैं उस आधार पर देशवासियों की यह मांग उचित होगी कि जेटली वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी छोड़ दें। उनका कहना है वित्त मंत्री केवल एक व्यवस्था में भरोसा करते हैं कि चित भी मेरी और पट्ट भी मेरी। और तो और, यशवंत सिन्हा प्रधानमंत्री से मांग भी की थी कि वे जेटली को तुरंत वित्त मंत्री पद से बरखास्त करें। तो, बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी मोदी सरकार को ढाई लोगों की सरकार करार दे डाला था। इसके अलावा शत्रुघ्न सिन्हा भी मोदी और जेटली पर कई बार कड़े कटाक्ष कर चुके हैं।
बहरहाल, नोटबंदी के परिणामों ने जता दिया है कि अर्थशास्त्र की कम समझ उजागर हो गई। तभी तो विपक्ष तो विपक्ष, अपने भी सरकार पर प्रहार करने से नहीं चूक रहे।

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