' दस्तावेज ऑफ रूंगटास' पुस्तक का विमोचन
रूंगटा परिवार की ऐतिहासिक विरासत पर आधारित किशन रूंगटा को गांधीजी के गुणों ने प्रभावित किया: मुकुंद रूंगटा जयपुर। यह हमारा सौभाग्य था कि जब भी गांधीजी मुंबई आते थे तो वे अपनी सुबह की पूजा रूंगटा हाउस में करते थे, जहां उन्हें बड़ी संख्या में जनता को संबोधित करना होता था। मेरे पिता ने मुझे बताया था कि यह गांधीजी की व्यवस्था थी कि जिसे भी उनका ऑटोग्राफ चाहिए होता था, उसे एक रुपया देना होता था और वो पैसे कांग्रेस किटी में जाते थे। एक बार पैसे न दे पाने पर एक व्यक्ति ने गांधीजी का ऑटोग्राफ लेने की गुहार लगाई थी, हालांकि गांधीजी ने उस व्यक्ति को साफ मना कर दिया था। मेरे पिता ने गांधीजी के न्याय परायण और साहसी होने के इन दुर्लभ गुणों को आत्मसात किया, जिन्हें उन्होंने अपने जीवन में बाद में आगे बढ़ाया। यह बात 'दस्तावेज ऑफ रूंगटास' पुस्तक के विमोचन के अवसर पर श्रोताओं को संबोधित करते हुए किशन रूंगटा के पुत्र मुकुंद रूंगटा ने कही। वह सिटी के एक होटल में आकृति पेरीवाल से बातचीत कर रहे थे।
अपने पिता के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि मेरे पिता हमेशा से एक ऐसे व्यक्ति थे, जो लाइमलाइट में नहीं बल्कि काम करने में विश्वास करते थे। वे क्रिकेट के बारे में सब कुछ जानते थे, लेकिन कभी भी खेल में कोई पद नहीं लेना चाहते थे। वह भविष्य के लिए सोचते थे। वे हमेशा से युवाओं से बात करते, उनके विचारों को सुनते और नई दुनिया के बारे में सीखते थे। यही मुख्य कारण था कि उन्होंने महसूस किया कि जिन महत्वपूर्ण कारकों और लोगों की वजह से जो आज रूंगटा परिवार है, उनके बारे में इस पुस्तक के माध्यम से बताना उनकी जिम्मेदारी थी।
रूंगटा परिवार की ऐतिहासिक विरासत पर आधारित किशन रूंगटा को गांधीजी के गुणों ने प्रभावित किया: मुकुंद रूंगटा जयपुर। यह हमारा सौभाग्य था कि जब भी गांधीजी मुंबई आते थे तो वे अपनी सुबह की पूजा रूंगटा हाउस में करते थे, जहां उन्हें बड़ी संख्या में जनता को संबोधित करना होता था। मेरे पिता ने मुझे बताया था कि यह गांधीजी की व्यवस्था थी कि जिसे भी उनका ऑटोग्राफ चाहिए होता था, उसे एक रुपया देना होता था और वो पैसे कांग्रेस किटी में जाते थे। एक बार पैसे न दे पाने पर एक व्यक्ति ने गांधीजी का ऑटोग्राफ लेने की गुहार लगाई थी, हालांकि गांधीजी ने उस व्यक्ति को साफ मना कर दिया था। मेरे पिता ने गांधीजी के न्याय परायण और साहसी होने के इन दुर्लभ गुणों को आत्मसात किया, जिन्हें उन्होंने अपने जीवन में बाद में आगे बढ़ाया। यह बात 'दस्तावेज ऑफ रूंगटास' पुस्तक के विमोचन के अवसर पर श्रोताओं को संबोधित करते हुए किशन रूंगटा के पुत्र मुकुंद रूंगटा ने कही। वह सिटी के एक होटल में आकृति पेरीवाल से बातचीत कर रहे थे।
अपने पिता के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि मेरे पिता हमेशा से एक ऐसे व्यक्ति थे, जो लाइमलाइट में नहीं बल्कि काम करने में विश्वास करते थे। वे क्रिकेट के बारे में सब कुछ जानते थे, लेकिन कभी भी खेल में कोई पद नहीं लेना चाहते थे। वह भविष्य के लिए सोचते थे। वे हमेशा से युवाओं से बात करते, उनके विचारों को सुनते और नई दुनिया के बारे में सीखते थे। यही मुख्य कारण था कि उन्होंने महसूस किया कि जिन महत्वपूर्ण कारकों और लोगों की वजह से जो आज रूंगटा परिवार है, उनके बारे में इस पुस्तक के माध्यम से बताना उनकी जिम्मेदारी थी।