दरअसल इन दिनों नगर निगम, नगर परिषद और पंचायत चुनाव में जिस तरह से संगठन के होने वाले फैसलों पर भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की छाप दिखाई दी है उससे भी साफ है कि संगठन के तमाम फैसले भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही ले रहे हैं, यही वजह है कि निकाय और पंचायत चुनावों में पर्यवेक्षकों के तौर पर भी संगठन के लोगों की बजाए विधायकों को अहमियत दी जा रही है।
टिकट वितरण से लेकर सिंबल बांटने तक का काम मुख्यमंत्री के निर्देश पर विधायकों को दिया गया था।
पायलट के पीसीसी अध्यक्ष रहते 2 पावर सेंटर
प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट के पद पर रहने के दौरान प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में 2 पावर सेंटर बने हुए थे। कई मंत्रियों-विधायकों के साथ साथ संगठन के अंदर भी नेता दो खेमों में बैठे हुए थे। संगठन के तमाम फैसले सचिन पायलट स्वयं लेते थे।
यही वजह है कि आमजन के साथ-साथ कांग्रेस कार्यकर्ता भी अपनी फरियाद लेकर बड़ी संख्या में डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट के पास पहुंचते थे, लेकिन सचिन पायलट के डिप्टी सीएम और पीसीसी चीफ पद से बर्खास्त किए जाने के बाद से प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में दूसरे पावर सेंटर का अस्तित्व लगभग समाप्त सा हो गया है।
प्रदेश कार्यकारिणी के गठन में भी दखल
वहीं विश्वस्त सूत्रों की माने तो बीते सवा सौ दिनों से जिस प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणी घोषित होने का इंतजार किया जा है उसमें भी कहीं न कहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दखल माना जा रहा है।
कांग्रेस गलियारों में चर्चा इस बात की है कि प्रदेश कांग्रेस की नई कार्यकाऱिणी सीएम गहलोत के स्तर पर तैयार की जा रही है, जिसमें उनके विश्वस्त नेताओं और कार्यकर्ताओं को एडजस्ट किए जाने की चर्चा है। वहीं हाल ही में जितनी भी राजनीतिक नियुक्तियां हुई हैं उनमें भी अधिकांश नियुक्तियों में मुख्यमंत्री गहलोत की चली है।