यह फैसला ऐसा समय किया गया, जब हम समाज सुधारक राजा राजर्षि छत्रपति साहू महाराज की 100वीं पुण्यतिथि मना रहे हैं। उन्होंने महिलाओं के उद्धार के लिए काम किया। महिला स्वयं सहायता समूह के साथ कार्यरत अंजलि पेलवान (35) का कहना है कि विधवा होने के बावजूद वह गहने पहनती हैं। उन्होंने बताया कि हमने महाराष्ट्र के मंत्री राजेंद्र यद्राकर को विधवाओं के हस्ताक्षर वाला एक ज्ञापन सौंपा है। इसमें विधवा संबंधी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने की मांग की गई है।
विधवा प्रथाओं के खिलाफ पहल सोलापुर की करमाला तहसील में महात्मा फुले समाज सेवा मंडल के संस्थापक अध्यक्ष प्रमोद जिंजादे ने की। उन्होंने घोषणा कि उनकी मौत के बाद पत्नी को इस प्रथा के लिए मजबूर नहीं किया जाए। दो दर्जन पुरुषों ने इस घोषणा का समर्थन किया। कई विधवाओं की प्रतिक्रिया भी सकारात्मक रही।
सरपंच ने बताया, कोरोना की पहली लहर में हमारे एक सहयोगी की दिल के दौरे से मौत हो गई थी। उनके अंतिम संस्कार के दौरान मैंने देखा कि कैसे उनकी पत्नी को चूड़ियां तोड़ने, मंगलसूत्र हटाने और सिंदूर पोंछने के लिए मजबूर किया। इससे पत्नी का दुख और बढ़ गया। वह दृश्य हृदय विदारक था। तभी हमने तय किया कि गांव में इस तरह की प्रथाओं पर रोक के कदम उठाएंगे।