बता दें कि मॉडर्ना के तीसरे फेज के अंतिरम ट्रॉयल में 15000 लोगों को वैक्सीन दी गई थी और 15000 लोगों को प्लेसिबो। प्लेसिबो से आशय है कि इन लोगों को वैक्सीन की बजाय सामान्य सैलाइन वाटर दिया गया था। जिन लोगों को वैक्सीन दी गई थी उनमें कई महीनों के बाद सिर्फ 5 लोगों को कोरोना हुआ और किसी में भी इसने गंभीर रूप धारण नहीं किया। जबकि जिन लोगों को प्लेसिबो दी गई थी उनमें से 90 लोगों को आगे चल कर कोरोना हो गया और 11 में इसने गंभीर रूप धारण कर लिया।
कंपनी ने बताया है कि इसकी वैक्सीन का कोई भी गंभीर साइड इफेक्ट भी नहीं देखा गया है। केवल कुछ लोगों को इसके कारण शरीर में दर्द और सिर दर्द की समस्या देखी गई।
कंपनी अब जल्दी ही अमरीका के दवा नियामक यूएस एफडीए के सामने लाइसेंस के लिए आवेदन करेगी। इसके पहले कंपनी कुछ और परिणामों का इंतजार कर रही है।
बता दें मॉडर्ना वैक्सीन और फाइजर की वैक्सीन दोनों ही समान रूप से काम करती हैं। दोनों आरएनए अथवा एमआरएनए आधारित वैक्सीन हैं। लेकिन मॉडर्ना की वैक्सीन अपेक्षाकृत अधिक असरदार होने के साथ-साथ एक और मायने में फाइजर कंपनी की वैक्सीन की तुलना में कारगर है। फाइजर की वैक्सीन को जहां स्टोर करने के लिए इसे माइनस 75 डिग्री सेल्सियस पर रखना होता है वहीं मॉडर्ना की वैक्सीन को माइनस 20 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर किया जा सकता है और इस वैक्सीन को पूरी दुनिया में ट्रांसपोर्ट करने की दिशा में मॉडर्ना वैक्सीन की ये खूबी बेहद कारगर और निर्णायक साबित हो सकती है।