-तालाब की दरकार…तलाश रहे नए आशियाने इन पक्षियों को अठखेलियों और स्वछंद विचरण के लिए पानी से भरे तालाब चाहिए। मगर इस बार खीचन के तालाब में पानी बहुत कम है। जिसके चलते यहां पहुंचे पक्षियों ने अपने नए आशियाने ढूंढने के लिए उड़ान भर दी। इस कारण बाड़मेर जिले के पचपदरा के रेवाड़ा और मानसरोवर तालाब पर बड़ी तादाद में कुरजां ने डेरा जमाया है तो जोधपुर के ही बाप तहसील के कुछ तालाबों पर कुरजां ने अपने नए आशियाने बनाए हैं।
-लाखों की तादाद…6000 किमी से आकर डालती डेरा कुरजां के कारण जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर स्थित फलौदी उपखंड का खीचन गांव दुनिया भर में अपनी खास पहचान बना चुका है। स्थानीय तालाबों पर आने वाली लाखों की तादाद में साइबेरियन (डेमोसाइल क्रेन) सदियों से शीतकालीन प्रवास पर छह हजार किलोमीटर की दूरी तय कर दल के साथ सितंबर महीने के अंत तक यहां डेरा डालती है। कुरजां के प्रवास के कारण खीचन अपना पर्यटन नक्शे पर खास स्थान बना चुका है। तो पर्यटन विभाग राजस्थान भी अपने प्रचार प्रसार में खींचन और कुरजां को खास तवज्जो देता है। प्रतिवर्ष हजारों की तादाद में पर्यटक कुरजां की अठखेलियाँ देखने खीचन के तालाब पर पहुंचते हैं। इस वर्ष भी खीचन में बड़ी तादाद में साइबेरियन क्रेन इस गांव अपने नियत समय पर पहुंचे थे। मगर सितंबर से लेकर अब तक साइबेरियन क्रेन की संख्या में काफी गिरावट आई है।