अपने बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा असली अग्नि परीक्षा 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं, जहां उन्हें पार्टी को जीत दिलाकर फिर से सत्ता में लाने की रहेगी।
हालांकि एक साल में पार्टी को एकजुट करने का डोटासरा दावा करते रहे, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां नहीं होने के कारण पार्टी एक बार फिर बंटी हुई नजर आ रही है। यहीं नहीं, एक साल बाद भी जिला और ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्तियां नहीं होना पाना साफ बता रहा है कि अभी डोटासरा को पार्टी को एकजुट करने में थोड़ा वक्त और लग सकता है।
यूं मिला था अध्यक्ष का पद
एक साल पहले 14 जुलाई 2020 को कांग्रेस सरकार पर आए सियासी संकट के दौरान सचिन पायलट और उनके गुट के विधायकों के बगावत के बाद मानेसर चले जाने के बाद गोविंद डोटासरा को पार्टी ने अध्यक्ष पद की कमान सौंपी थी। उस समय कई दिग्गज नेता हरीश चौधरी, रघु शर्मा और लालचंद कटारिया पीसीसी अध्यक्ष के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए थे लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने तेज तर्रार नेता और लक्ष्मण से लगातार तीसरी बार विधायक बनें गोविंद सिंह डोटासरा पर भरोसा जताते हुए उन्हें पीसीसी अध्यक्ष की कमान सौंपी।
पीसीसी अध्यक्ष की कमान संभालन के साथ ही डोटासरा के सामने सबसे बड़ी चुनौती भंग पड़े संगठन को खड़ा करना थी, उन्हें बिना संगठन के ही निकाय और पंचायत चुनावों में पार्टी को उतारना पड़ा, जिसमें उन्होंने पहली बार शहरी निकायों में पार्टी को जीत दिलाई। हालांकि उन्हें कार्यकारिणी गठन करने में छह महीने का वक्त लगा।
विधानसभा उपचुनाव और निकायों में मिली जीत
डोटासरा के एक साल के कार्यकाल में सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि उनके नेतृत्व में पार्टी ने विधानसभा उपचुनाव और निकायों में शानदार प्रदर्शन किया था। प्रदेश में पहली बार कांग्रेस पार्टी ने 6 नगर निगम में जयपुर हैरिटेज, कोटा उत्तर, दक्षिण और जोधपुर उत्तर नगर निगम में जीत दर्ज की थी तो स्थानीय निकायों में भी चुनावी नतीजे पार्टी के पक्ष में गए थे। विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी ने 3 में से 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जिसके बाद से डोटासरा पावरफुल नेता के तौर पर कांग्रेस में उभरे।
संघ-भाजपा पर बयानों को लेकर रहते हैं चर्चाओं में
पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा अक्सर अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं, विधानसभा उपचुनाव के दौरान ‘नाथी का बाड़ा’ बयान को लेकर वे काफी चर्चाओं में थे। इसके साथ ही वह कई बार भाजपा नेताओं से भी ट्विटर पर भिड़ चुके हैं। वहीं पीसीसी चीफ डोटासरा पूरी प्रदेश कांग्रेस और मंत्रिमंडल में एक मात्र नेता हैं जो लगातार आरएसएस और भाजपा पर हमलावर रहते हैं, संघ-भाजपा पर हमला करना का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।
हाल ही में भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी बनाए गए संघ प्रचारक की गिरफ्तारी नहीं होने पर डोटासरा ने एसीबी पर सवाल खड़े करते हुए अपनी सरकार से संघ प्रचारक की जल्द से जल्द गिरफ्तारी की मांग कर डाली थी। यही वजह है कि इन दिनों डोटासरा भाजपा नेताओं के निशाने पर रहते हैं।
नहीं कर पाए गुटबाजी दूर
अपने एक साल के कार्यकाल के दौरान डोटासरा खेमों में बंट चुकी कांग्रेस को ना तो एकजुट कर पाए और ना ही गुटबाजी खत्म करने के लिए कोई प्रयास किया। हाल ही सचिन पायलट कैंप और अशोक गहलोत कैंप के नेताओं के बीच जमकर बयानबाजी चली थी, लेकिन सियासी बयानबाजी पर लगाम लगाने के लिए पीसीसी चीफ डोटासरा ने कोई कड़ा रुख नहीं अपनाया।
जिलों में संगठनात्मक ढांचा खड़ा करना बड़ी चुनौती
पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा के लिए सबसे बड़ी चुनौती जिलों में संगठनात्मक ढांचा खड़ा कर उन्हें मजबूत करना सबसे बड़ी चुनौती है, पार्टी में गुटबाजी और खींचतान के चलते एक साल बाद भी जिलाध्यक्षों और ब्लॉक अध्यक्षों की घोषणा नहीं हुई, ऐसे में जिला और ब्लॉक लेवल पर जल्द से जल्द नियुक्तियां कर उन्हें अभी से 2023 की जंग के लिए तैयार करना भी डोटासरा के लिए बड़ी चुनौती है।
प्रधान से तीसरी बार विधायक
प्रधान पद से राजनीति शुरू करने वाले गोविंद सिंह डोटासरा ने इसके बाद राजनीति में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे 2008 में पहली बार लक्ष्मणगढ़ से विधायक चुने गए थे। 2013 और 2018 में लगातार तीसरी बार विधायक बनकर गहलोत सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार बनें।