बता दें सिर्फ 2021 में ही पूरे देश में चेक अनादरण के कुल 6,88,751 मामले अदालतों तक पहुंचे जिनमें 4,78,377 मामलों पर फैसला भी हो गया। इनमें से राजस्थान में कुल 91,212 मामले अदालतों तक पहुंचे और सिर्फ 39,502 मामलों में ही फैसला हो सका। यानी पूरे देश में पिछले साल चेक बाउंस के 69 प्रतिशत मामलों पर अदालतों का फैसला आ गया जबकि राजस्थान में सिर्फ 43 प्रतिशत चेक बाउंल के मामलों में ही अदालतों ने फैसला सुनाया।
जयपुर की अदालत ने पेश की नजीर जयपुर की एक अदालत विशिष्ट महानगर मजिस्ट्रेट(एनआई एक्ट) क्रम 12 जयपुर महागनर द्वितीय आरजेएस अधिकारी नीतू गुप्ता के द्वारा चेक अनादरण के एक मामले में अभियुक्त सुखदेव मीणा को एक वर्ष के कारावास से दंण्डित किया गया है। साथ ही अदालत ने अभियुक्त को 90 हजार रुपए प्रतिकर के रूप में परिवादी को प्रदान करने के आदेश भी दिए हैं। परिवादी के अधिवक्ता पवन कुमार गुप्ता ने बताया कि अभियुक्त के द्वारा परिवादी फर्म मै. आर के मित्तल मार्बल्स से पचास हजार रुपए का मार्बल पत्थर उधर क्रय किया था और भुगतान हेतु परिवादी को चेक प्रदान किया था। अभियुक्त द्वारा दिया गया चेक अपर्याप्त फंड के कारण अनादरित हो गया। परिवादी के वकील गुप्ता ने बताया कि मौजूदा केस में अदालत ने एक दृष्टांत पेश किया है।
किस्त पर लोन की बढ़ती प्रवृत्ति से गहराई समस्या बता दें , पिछले कुछ सालों में बाइक-ट्रेक्टर और कार से लेकर घर खरीदने के लिए किस्त पर लोन की बढ़ती प्रवृत्ति ने अदालतों में लंबित मुकदमों का भार बढ़ा दिया है। चेक बाउंस के प्रावधानों को बैंक व वित्तीय संस्थान अपनी बकाया वसूली के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं इन मुकदमों के बढ़ते भार के कारण अदालतें शीर्ष न्यायपालिका से लेकर विधायिका तक के निशाने पर हैं। गौर करने की बात ये है कि इन मुकदमों के मामलों में राजस्थान देश में दूसरे स्थान पर है, जबकि महाराष्ट्र में इस तरह के लंबित मामले सबसे अधिक हैं।
वहीं आपराधिक मामलों से जुड़े कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि चेक बाउंस मूलत: तो सिविल विवाद है लेकिन इसके लिए कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया दांडिक (क्रिमिनल) अपनाई जाती है। वकालत, न्यायपालिका व पुलिस से जुड़े लोगों के अनुसार अदालत पहुंचने वाले चेक बाउंस के 90 प्रतिशत मामलों में बैंक या वित्तीय संस्थान पक्षकार होते हैं।
गुजरात में पिछले साल सबसे ज्यादा मामले, राजस्थान दूसरे नंबर पर बता दें , चेक बाउंस के लंबित मामलों के लिहाज भले ही महाराष्ट्र टॉप पर है, लेकिन वर्ष 2021 में कोर्ट तक सबसे अधिक मामले गुजरात में पहुंचे और फैसलों के लिहाज से भी गुजरात सबसे आगे रहा। जहां तक राजस्थान की बात करें तो अदालतों में नए मामलों और कुल मामलों के लिहाज से राजस्थान देश में दूसरे नंबर पर रहा। लेकिन फैसलों के मामले में महाराष्ट्र 66,682 संख्या के साथ दूसरे व 54,384 संख्या के साथ दिल्ली तीसरे स्थान पर रहे। फैसलों के मामले में पंजाब देश में चौथे और राजस्थान पांचवें स्थान पर रहे। देश में फिलहाल कुल 33 लाख 44 हजार 290 चेक बाउंस के मामले लंबित हैं।
मौजूदा समय में चेक बाउंस के मामलों की तस्वीर: 13 अप्रेल 22 की स्थिति देशभर में कुल लंबित मामले— 33,44,290 महाराष्ट्र में लंबित मामले—5,60,914 राजस्थान में लंबित मामले—4,79,774 ---------------- देशभर में 2021 में चेक बाउंस की स्थिति : 1 जनवरी से 31 दिसम्बर 21 तक
बता दें, भारतीय अर्थव्यवस्था में गांवों की भी बड़ी भूमिका है। भौतिक सुख सुविधाओं के लिए यहाँ भी अनाप-शनाप लोन लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। गांव में ट्रेक्टरों की संख्या इसी कारण तेजी से बढ़ रही है। लोन चुकाने के लिए आगामी तारीख पर भुगतान के लिए चेक दिए जा रहे हैं। इस प्रवृत्ति पर कहीं न कहीं कोई लगाम तो लगनी चाहिए। आइए , देखते हैं , पूरे देश में राजस्थान कहां खड़ा है चेक बाउंस के मामलों में।
2021 में कुल अदालत पहुंचे नए मामले — 6,88,751
2021 में इतने मामलों में हुआ फैसला—4,78,377 राजस्थान की स्थिति
अदालत पहुंचे नए मामले — 91,212
इतने मामलों में हुआ फैसला—39,502 गुजरात की स्थिति
अदालत पहुंचे नए मामले —— 1,13,095
इतने मामलों में हुआ फैसला—91,540
उत्तरप्रदेश बड़ा राज्य, लेकिन कुल लंबित मामले— 2,66,777अमरीका में चेक बाउंस नहीं माना जाता है अपराध चेक बाउंस के मामले कैसे रुकें इस पर देश में बहस शुरू हो गई है। राजस्थान पत्रिका में वरिष्ठ रिपोर्टर शैलेंद्र अग्रवाल की एक रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में हाल ही चेक बाउंस मामले में न्यायमित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा का सुझाव आया है कि आरटीजीएस (रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट) के जरिए भुगतान समाधान का रास्ता हो सकता है, वहीं एक अन्य वर्ग का कहना है कि आरटीजीएस आगामी तारीख पर भुगतान के लिए बैंक व वित्तीय संस्थाओं को अमानत पर दिए जाने वाले चेक का विकल्प नहीं हो सकता। इन दो विचारों ने बहस को जन्म दिया है। वहीं आपराधिक मामलों से जुड़े कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि चेक बाउंस मूलत: तो सिविल विवाद है लेकिन इसके लिए कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया दांडिक (क्रिमिनल) अपनाई जाती है। वकालत, न्यायपालिका व पुलिस से जुड़े लोगों के अनुसार अदालत पहुंचने वाले चेक बाउंस के 90 प्रतिशत मामलों में बैंक या वित्तीय संस्थान पक्षकार होते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर की प्रवृत्ति को बढ़ाया जाए और चेक देने पर कारण बताना अनिवार्य किया जाए, ये भी एक उपाय हो सकता है। इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर आसान भी है। ईसीएस के बाउंस होने पर सजा का प्रावधान किए जाने का का भी सुझाव है । यह तय है कि समस्या का समाधान के लिए कानून में भी बदलाव करना ही होगा। चेक बाउंस के मामलों का रिकवरी के लिए इस्तेमाल काफी हो रहा है। इन पर रोक लगानी चाहिए।
गौर करने की बात ये है कि अमरीका में चेक बाउंस को अपराध नहीं माना जाता, क्योंकि यह संबंधित पक्षों के बीच विवाद माना जाता है। भारत में भी ऐसा कानूनी प्रावधान होने पर ही समस्या का समाधान निकल सकता है। चेक बाउंस के मामलों से कई संस्थाओं में भ्रष्टाचार भी बढ़ा है, ऐसा भी देखा गया है।