scriptदेश के कुल दिव्यांगों में से मात्र 36 फीसदी को ही रोजगार हासिल | Only 36 of the country's total divisive people get employment | Patrika News
जयपुर

देश के कुल दिव्यांगों में से मात्र 36 फीसदी को ही रोजगार हासिल

2011 की जनगणना के अनुसार, कुल दिव्यांगों में से मात्र 36 फीसदी को ही रोजगार हासिल है। पुरुष दिव्यांगों के 47 फीसदी की तुलना में 23 फीसदी महिला दिव्यांग कार्यरत हैं। बात अगर ग्रामीण भारत की हो तो 25 फीसदी महिला दिव्यांग रोजगार पर है, जबकि शहरी भारत में यह आंकड़ा केवल 16 फीसदी का है। नारायण सेवा संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने इस लेख में बताया कि दिव्यांगों में विशेष प्रशिक्षण, कौशल और सामाजिक प्रक्रिया की कमी के कारण वे नौकरी की तलाश से लेकर नौकरी पाने के बाद भी सामान्य लोगों के साथ मुकाबला करने में पीछे रह जाते है, खुद को असहाय पाकर अपना आत्मविश्वास खो देते हैं। दूसरी तरफ, 2011 की जनगणना के अनुसार 1.7 करोड़ दिव्यांग बेरोजगार थे, जिनमें से 46 फीसदी पुरुष और 54 फीसदी महिलाएं थी। दिव्यांगों के लिए रोजगार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता है। इसमें संगठन में कल्याण और प्रासंगिकता की भावना शामिल है जैसे साक्षात्कार के समय पूछे जाने वाले प्रश्न, साथ में काम करने वाले लोगों का व्यवहार, दिव्यांगों के काम में आसानी देते सुलभ कार्यस्थल और प्रेरणा।ऐसी कंपनियां है, जो कर्मचारियों और नियोक्ताओं के लिए विशेष गतिविधियां चलाती है, ताकि दिव्यांग खुद को अलग-थलग महसूस न करें और टीम का हिस्सा बनें। हालांकि, अब भी समाज और कंपनियों को दिव्यांगों के लिए एक ऐसा अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है, जो दिव्यांगों में आत्मविश्वास भरने वाला हो, उनके काम को अलग से पहचाना जा सके और उन्हें सबके साथ चलने में कोई असहजता न हो।

जयपुरJun 26, 2019 / 08:23 pm

Narendra Singh Solanki

employment

देश के कुल दिव्यांगों में से मात्र 36 फीसदी को ही रोजगार हासिल

एक दिव्यांग उम्मीदवार के मद्देनजर एचआर को इन बातों का रखना चाहिए ध्यान
हर उद्योग में यह एक मुद्दा है कि दिव्यांगों को कार्यस्थल के ढांचे, पहुंच, उचित आवास, समान भागीदारी, स्वास्थ्य लाभ जैसे अधिकारों को बिना भेदभाव कैसे दिया जाए, जबकि कई कार्यों को वे कर नहीं सकते। इसके अलावा, कार्यस्थल पर दिव्यांगों की काम के प्रति प्रतिबद्धता और दृढ़ता पर भी सवाल उठते है। लेकिन एचआर को ध्यान रखना चाहिए ,ऐसे कैम्पेन भी है, जिनमें वे भाग ले सकते है और मुख्य भूमिकाओं का निर्वाह कर सकते है।
पहुंच बढ़ाकर दिव्यांगों को करें सशक्त
वल्र्ड बैंक ने कहा है कि भारत में हर 12 घरों में से एक घर में दिव्यांग है। इसीलिए उन्हें कार्यस्थल पर मुख्यधारा में लाना पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण है। एक ऐसे समय में, जब सामने वाले शख्स के प्रति सहानुभूति कम होती जा रही है। नुक्कड़ नाटक के आयोजन, संगोष्ठी, एचआर एक्टिविटीज, वीडियो, एनजीओ की भागीदारी, दिव्यांगों की स्कूलों में कर्मचारियों की विजिट जैसे विभिन्न उपाय है, जो कंपनी के कर्मचारियों के लिए दिव्यांगों की स्थिति को उजागर करते हुए उनके प्रति एक सही समझ पैदा कर सकते हैं। सुगम्य भारत अभियान के बाद, लोग दिव्यांगों के प्रति अधिक विचारशील हो गए है, लेकिन इसके लिए अभी भी शहरी और ग्रामीण भारत में अधिक सक्रियता और तैयारी की आवश्यकता है।
दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए सुलभ कार्यस्थल
विकलांग लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन के अनुसार, कार्यालयों को ब्रेल, सहायक तकनीक और संचार की विभिन्न शैलियों का उपयोग करने के लिए सुलभ स्वरूपों और प्रौद्योगिकियों को अपनाना चाहिए। प्रक्रिया में मीडिया की भागीदारी आवश्यक तत्व है और इंटरनेट प्रदाताओं को हर प्रारूप में ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
नए स्टार्टअप और बढ़े संगठनों में काम के लचीले घंटे, तकनीक के अनुकूल स्थान और नियोक्ताओं के लिए वर्कशॉप को लागू करके सभी के लिए अनुकूल कार्यस्थल को बढ़ावा देना चाहिए। कनाडाई सरकार कानून के तहत समानता, समान लाभ और सुरक्षा की गारंटी देती है, बिना किसी तरह के भेदभाव के। इसलिए हमारी सरकार को भारत में समान नियम लागू करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि कार्यस्थल दिव्यांगों के लिए समान और समावेशी हो सके।
बाजार के अवसरों को ध्यान में रखते हुए दिव्यांगों में शिक्षा की आवश्यकता क्यों है
2011 की जनगणना ने संकेत दिया कि उत्तर प्रदेश (20.31 फीसदी), बिहार (14.24 फीसदी), महाराष्ट्र (10.64 फीसदी) और पश्चिम बंगाल (6.48 फीसदी) ऐसे राज्य है जहां 50 फीसदी से अधिक बच्चे दिव्यांग हैं। दिव्यांग श्रमिकों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश (14.84 फीसदी) और महाराष्ट्र (12.81 फीसदी) से है। यही कारण है कि इन राज्य सरकारों को बाजार में विकसित हो रहे अवसरों को ध्यान में रखते हुए कौशल विकास और शिक्षा संरचना पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
कुछ पाठ्यक्रम है, जिन्हें ऑनलाइन और संस्थानों से किया जा सकता है ताकि बाजार की मांग को पूरा करने के लिए दिव्यांग जरूरी स्किल हासिल कर सकें।
एआई हेल्थकेयर प्रोग्राम: हेल्थ डेटा, विश्लेषण और नए नियमों को स्थापित करते हुए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीके कई उद्योग में पारंपरिक मानदंडों को बदल रही है।
एंटरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम: जैसे-जैसे भारत में स्टार्टअप की संख्या बढ़ रही है, व्यावसायिक परिदृश्य नई प्रौद्योगिकियों और व्यापार मॉडल की ओर बढ़ रहा है। यही कारण है कि आज कार्य वृद्धि को संभालने के लिए जिम्मेदारी और प्रासंगिक कौशल की आवश्यकता होती है।
बिजनेस एनालिटिक्स फंडामेंटल्स प्रोग्राम: एक विश्लेषक को संगठनात्मक विकास के लिए डेटा रखने और डेटा के निष्कर्षों को लागू करने की आवश्यकता होती है। इस कोर्स में डेटा कलेक्शन और विजुअलाइजेशन, डिस्क्रिप्टिव स्टैटिस्टिक्स, बेसिक प्रोबेबिलिटी, स्टैटिस्टिकल इन्वेंशन और लीनियर मॉडल्स बनाना शामिल है।
एनर्जी एंड सस्टेनेबिलिटी डवलपमेंट प्रोग्राम: हर देश ऊर्जा के क्षेत्र में वर्तमान और संभावित वैश्विक चुनौतियों के चलते निरंतर विकास को प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है। डिजिटल क्रांति के बाद, संगठन ऊर्जा उद्योग में लचीले बाजार के लिए तकनीकी और व्यावसायिक पहलू तलाशने के प्रयास में है। इस ट्रेंडिंग कोर्स को पेशेवरों, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और छात्रों द्वारा किया जा सकता है।
डेटा मैनेजमेंट: वैश्विक स्तर पर अपनी पहुंच बढ़ाने के साथ-साथ संगठनों की सुरक्षा भी दांव पर है। यही कारण है कि संगठन और सुरक्षा के संरचित विकास के लिए डेटा बेस प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है। गुणवत्ता, मॉडलिंग और डेटा एकीकरण का पालन करने के लिए डेटा प्रबंधन प्रथाओं की आवश्यकता होती है। अक्षुण्ण गोपनीयता, बेहतर विनियमन और प्रभावी विपणन के साथए उद्यमों द्वारा निरंतर व्यापार वृद्धि हासिल की जा सकती है।

Home / Jaipur / देश के कुल दिव्यांगों में से मात्र 36 फीसदी को ही रोजगार हासिल

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो