अंगदान की काउंसलिंग को लेकर पहले प्रदेश में एक-दो स्वयंसेवी संस्थाएं ही थी, लेकिन अब धीरे-धीरे कई स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आ रही हैं। जहां भी ब्रेन डेड मरीज घोषित किया जाता है वहां संस्था के सदस्य जाकर अंगदान के लिए परिजनों को प्रेरित करते हैं। जो परिजन मान जाते हैं उनके ब्रेन डेड मरीज की पूरी जांचों के बाद उसके अंगों को दूसरे मरीज के लिए निकालने की प्रक्रिया शुरू होती है। एक ब्रेन डेड मरीज मुख्य रूप से आठ तरह के अंगों को दान कर सकता है। इन अंगों में किडनी, लंग्स, हार्ट, आई, लिवर, पेनक्रियाज, कोर्निया व स्कीन टिशु शामिल है। कैडेवर ट्रांसप्लांट शुरू होने के बाद अब तक राजस्थान में अब तक कुल 34 दानदाता अपने कुल 110 सॉलिड अंगों को दान कर चुके हैं।
सबसे पहले केडेबर ट्रांसप्लांट की सुविधा निजी अस्पतालों में ही उपलब्ध थी। प्रदेश के कुछ अस्पतालों में हार्ट ट्रांसप्लांट शुरू हुआ, लेकिन अब सुविधाओं के विस्तार के साथ ही सवाई मानसिंह अस्पताल में भी हार्ट ट्रांसप्लांट संभव हो सका है। एसएमएस अस्पताल में दो हार्ट ट्रांसप्लांट हो चुके हैं। सरकारी क्षेत्र में हार्ट ट्रांसप्लांट होना सरकारी क्षेत्र की एक बड़ी उपलब्धि है। आपको बता दें कि सवाई मानसिंह अस्पताल के लिए दो सौ करोड़ की लागत से अंगदान संस्थान बनाया गया है। इसके बाद ही हार्ट ट्रांसप्लांट जैसा जटिल ऑपरेशन यहा संभव हो पाया है।
आपको बता दें कि कैडेवर अंगदान के लिए बनी चिकित्सकों की कमेटी ही मरीज को ब्रेन डेड घोषित करती है। उसके बाद मरीज के परिजनों को ब्रेन डेड मरीज के अंगों का दान करने के लिए उनकी काउंसलिंग की जाती है। इसके लिए पूरे मापदंड बने हुए हैं। यानि, किसी भी परिजन को बाध्य कर इसके लिए तैयार नहीं किया जा सकता। यहां तक की प्रत्यारोपण से सीधे जुड़े डॉक्टर भी काउंसलिंग में सीधे तौर पर शामिल नहीं होते। राजस्थान में कैडेवर अंगदान के लिए बनी राजस्थान की वेब रजिस्ट्री के आंकड़ों को देखें तो इस समय भी 300 से ज्यादा मरीजों को तत्काल किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत है। कैडेवर अंगदाता मिलने पर इन्हें तत्काल नए जीवन का तोहफा मिल सकता है।