कांग्रेस हलकों में चर्चा इस बात की है दो माह प्रदेश में निकाय चुनाव का बिगुल बज जाएगा, लेकिन निकाय चुनाव को लेकर कांग्रेस में संगठनात्मक गतिविधियां और कामकाज शुरू नहीं हो पाया है जबकि भाजपा ने निकाय चुनाव की तैयारियां शुरू करने के साथ ही संगठन को चुस्त दुरुस्त करने के लिए बड़े स्तर पर सदस्यता अभियान भी शुरू कर दिया, लेकिन कांग्रेस नेता लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। न तो निकाय चुनाव की तैयारियों को लेकर कोई रोडमैप बनाया जा रहा है और न ही संगठनात्मक ढांचे में तब्दीली की जा रही है।
ऐसे में पार्टी के भीतर अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि ऐन मौके पर आधी अधूरी तैयारियों के साथ निकाय चुनाव में किस प्रकार भाजपा का मुकाबला कर पाएंगे?
कार्यकर्ताओं में बढ़ रही हताशा
वहीं संगठनात्मक गतिविधियां नहीं होने और नेताओं की उदासीनता के चलते पार्टी का कार्यकर्ता भी अब हताश नजर आ रहा है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि निकाय चुनाव में अगर पार्टी को जीत दर्ज करनी है तो उसे अभी से ही उसकी तैयारियों में जुट जाना था, साथ ही कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी जनता के बीच जाने के लिए जिम्मेदारियां दी जानी चाहिए थी, लेकिन संगठन के निर्देश और टास्क दिए बिना वे जनता के बीच किन मुद्दों को लेकर जाएं?
कार्यकर्ताओं में बढ़ रही हताशा
वहीं संगठनात्मक गतिविधियां नहीं होने और नेताओं की उदासीनता के चलते पार्टी का कार्यकर्ता भी अब हताश नजर आ रहा है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि निकाय चुनाव में अगर पार्टी को जीत दर्ज करनी है तो उसे अभी से ही उसकी तैयारियों में जुट जाना था, साथ ही कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी जनता के बीच जाने के लिए जिम्मेदारियां दी जानी चाहिए थी, लेकिन संगठन के निर्देश और टास्क दिए बिना वे जनता के बीच किन मुद्दों को लेकर जाएं?
पीसीसी में भी सन्नाटा
वहीं लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद से प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में भी सन्नाटा ही पसरा रहता है, नेताओं के नाम पर दो-चार पदाधिकारी ही पीसीसी में नजर आते हैं, अधिकांश कमरे खाली नजर आते हैं। दिवंगत नेता की जयंती या फिर पुण्यतिथि के मौके पर जरुर कुछेक पदाधिकारी नजर आते हैं।