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‘पद्मावती’ पर संग्राम: इतिहास मानता है रानी पद्मिनी और जौहर को सच

locationजयपुरPublished: Nov 20, 2017 02:13:23 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

फिल्म पद्मावती का विरोध बढ़ता जा रहा है। राजपूत जहां इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगा इस फिल्म को रुकवाने की बात कर रहा है।

Padmavati
राजेंद्र शर्मा/जयपुर। फिल्म पद्मावती का विरोध बढ़ता जा रहा है। राजपूत जहां इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगा इस फिल्म को रुकवाने की बात कर रहा है। तब से, जब से जयपुर में शूटिंग शुरू हुई थी। बाकी लोग वही हैं, जो हर बड़े मुद्दे पर अपनी सियासत चमकाने का काम करते हैं। अलबत्ता, खड़े हैं राजपूताने की आन-बान-शान की लड़ाई लडऩे का नाम लेकर। कइयों ने तो हवाओं का रुख भांपने के बाद ही वक्तव्य दिया है। अरसे से तो चुप्पी साधे तेल और तेल की धार देख रहे थे मानो। फिलहाल, 18 नवंबर 2017 को फिल्म एक दिसंबर को ही रिलीज करने की बात पर अड़े ‘वायकॉम 18’ ने भी 19 नवंबर को हवा के साथ चलना मुनासिब समझा और रिलीज डेट स्थगित कर दी। अपनी मर्जी से।
खैर, बात करते हैं इतिहास और लोकश्रुति की। सिर्फ और सिर्फ पद्मावती की। फिल्म में क्या दिखाया जा रहा है, कुछ देर छोड़ दें और देखते हैं। मानें तो पद्मिनी थी चित्तौड़ के राणा रत्नसिंह की महारानी। इनकी कथा पर महाकाव्य लिख मलिक मुहम्मद जायसी ने। इसी महारानी पद्मिनी पर फिल्म बनी और सुलग गया हिंदुस्तान। जयपुर से लेकर मुंबई दिल्ली और मेरठ तक फैल चुकी है आक्रोश की आग। जो इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की बात पर भड़का है।
कौन थे जायसी और क्या है ‘पद्मावत’
उपलब्ध जानकारी के मुताबिक मलिक मुहम्मद जायसी का जीवनकाल 1477-1542 माना गया है। वे सूफी संत कवि थे। उनका जन्म जायस (रायबरेली, यूपी) में और मृत्यु अमेठी (यूपी) में हुई मानी जाती है। उन्होंने अपनी रचना ‘पद्मावत’ में रतनसेन और नायिका पद्मिनी की प्रेमकथा को विस्तार से बताई गई है। इसी ऐतिहासिक या अर्ध ऐतिहासिक कथा से रतनसेन द्वारा पद्मावती को हासिल करने की बात जोड़ी गई है, जिसका आधार अवधी क्षेत्र में प्रचलित हीरामन सुग्गे की
एक लोककथा है। जो इस प्रकार है-
सिंहल द्वीप (श्रीलंका) का राजा गंधर्वसेन था, जिसकी कन्या पद्मावती थी, जो पद्मिनी (अत्यंत सुंदर) थी। उसने एक सुग्गा पाल रखा था, जिसका नाम हीरामन था। एक दिन पद्मावती की अनुपस्थिति में बिल्ली से बचकर वह सुग्गा भाग निकला। उसे एक बहेलिए ने पकड़ लिया और उसे एक ब्राह्मण को बेच दिया, जिसने उसे चित्तौड़ के राजा रतनसिंह राजपूत को बेच दिया। इस सुग्गे ने राजा को पद्मावती की अप्रतिम सुंदरता का बखान किया, तो राजा उसे देखने और प्राप्त करने को योगी बनकर निकल पड़ा।
अनेक वनों और समुद्रों को पार करके वह सिंहल पहुंचा। वहां सुग्गे ने रतनसिंह का संदेश पद्मावती तक पहुंचाया। पदमावती जब उससे मिलने एक देवालय में आई, उसे देख वह मूर्छित हो गया तब पद्मावती उसके हृदय पर चंदन से यह लिख कर चली गई कि वह उसे तब पा सकेगा जब वह सात आकाशों जैसे ऊँचे सिंहलगढ़ पर चढ़कर आएगा। तब वह सुग्गे के बताए गुप्त मार्ग से सिंहलगढ़ में घुसाा। राजा गंधर्वसेन को पता चला तो उसने रतनसेन को शूली पर चढ़ाने का आदेश दिया किंतु जब हीरामन सुग्गे से रतनसिंह के बारे में उसे सही जानकारी दी तो उसने पद्मावती का विवाह उसके साथ कर दिया।
रतनसिंह राजपूत पहले से भी विवाहित था और उसकी उस विवाहिता रानी का नाम नागमती था। पति के विरह में उसने बारह महीने कष्ट झेल कर किसी प्रकार एक पक्षी के द्वारा अपनी विरहगाथा रतनसिंह के पास भिजवाई और इस विरहगाथा से द्रवित होकर रतनसिंह पद्मावती को लेकर चित्तौड़ लौट आया। उसकी सभा में चेतन राघव नाम का एक संगीतकार था, जो तांत्रिक भी था। जिसे षड्यंत्र करने के आरोप में रतनसिंह ने देश निकाला दे दिया।
तब वह प्रतिशोध की आग में जलता हुआ तत्कालीन सुल्तान अलाउद्दीन की सेवा में जा पहुंचा और उसके सामने पद्मावती के अद्भुत सौंदर्य की जबरदस्त तारीफ की। इस पर अलाउद्दीन पद्मावती को हासिल करने को लालायित हो गया। उसने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। दीर्घ काल तक उसने चित्तौड़ पर घेरा डाल रखा, किंतु कोई सफलता होती उसे न दिखाई पड़ी, तो वह धोखे से रतनसिंह को संधि का संदेश भेज गढ़ के बाहर बुला बंदी बना कर दिल्ली ले गया। इस पर चित्तौड़ में पद्मावती अत्यंत दुखी हुई और अपने सामंतों गोरा तथा बादल से बात की।
गोरा और बादल ने रतनसिह को मुक्त कराने का बीड़ा लिया। उन्होंने सोलह सौ डोलियाँ सजाईं जिनके भीतर राजपूत सैनिकों को रखा और दिल्ली की ओर चल पड़े। वहाँ पहुंचकर उन्होंने खिलजी को संदेश भेजा कि पद्मावती अपनी चेरियों के साथ सुल्तान की सेवा में आई है और अंतिम बार अपने पति रतनसेन से मिलने की आज्ञा चाहती है। सुल्तान ने आज्ञा दे दी।
डोलियों में बैठे हुए राजपूतों ने तुरंत सुल्तान के सैनिकों पर हमला बोल रतनसिंह को मुक्त करवा के चित्तौड़ ले गए। जिस समय वह दिल्ली में बंदी था, कुंभलनेर के राजा देवपाल ने पद्मावती को प्रेम प्रस्ताव भेजा था। रतन सिंह को जब पदमावती ने उसे यह बात बताई, तो रतनसिंह ने कुंभलनेर जाकर देवपाल को द्वंद्व युद्ध में मारकर चित्तौड़ लौटा, किंतु देवपाल की सेल के घाव के कारण घर पहुंचते ही उसकी मृत्यु हो गई।
पद्मावती और नागमती ने उसके शव के साथ चितारोहण किया। अलाउद्दीन भी रतनसिंह का पीछा करता हुआ चित्तौड़ पहुंचा, किंतु उसे पदमावती न मिलकर उसकी चिता की राख ही मिली। इस कथा में जायसी ने इतिहास और कल्पना का अभूतपूर्व मिश्रण किया है। हिंदी साहित्य में ऐसी अद्भुत दूसरी कथा नहीं मिलती है।

क्या कहते हैं इतिहासकार
इस विषय पर इतिहासकारों में खूब मंथन हो चुका है। इस विषय में सर्वाधिक स्वीकार्य राजपूताना के इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा का मत माना गया है। ओझा ने ‘पद्मावत’ की कथा के लिए लिखा है कि इतिहास के अभाव में लोगों ने इसको ऐतिहासिक पुस्तक मान लिया, परंतु वास्तव में वह आजकल के ऐतिहासिक उपन्यासों की सी कविताबद्ध कथा है। इसको इन ऐतिहासिक बातों को आधार बनाकर रचा गया है कि रतनसेन (रत्नसिंह) चित्तौड़ का राजा, पद्मिनी या पद्मावती उसकी रानी और अलाउद्दीन दिल्ली का सुल्तान था, जिसने रतनसेन (रत्नसिंह) से लड़कर चित्तौड़ का किला छीना था।
जायसी की ‘पद्मावत’ में कुछ नाम ऐतिहासिक अवश्य हैं, परंतु घटनाएं अधिकांशत: कल्पित ही हैं। कुछ घटनाएँ जो ऐतिहासिक हैं भी उनका संबंध 1303 ईस्वी से न होकर 1531 ईस्वी से है। इसी प्रकार कर्नल टॉड का वर्णन भी काफी हद तक ऐतिहासिक नहीं है। इस संदर्भ में ओझा कहना है कि कर्नल टॉड ने यह कथा विशेषकर मेवाड़ के भाटों की बातों के आधार पर लिखी है और भाटों ने खुद उसको ‘पद्मावत’ से लिया है।
पद्मावत, टाड के राजस्थान संबंधी लेखों आदि की यदि कोई जड़ है तो केवल यही कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर चढ़ाई कर छह महीने के घेरा डालने के बाद विजय किया, राजा रतनसिंह इस लड़ाई मेंकई सामंतो सहित खेत रहे और रानी पद्मिनी ने कई स्त्रियों सहित जौहर की अग्नि में प्राणाहुति दी। बाकी बहुधा सब बातें कल्पना से खड़ी की गई है।
ओझा के मत को तकरीबन सभी इतिहासकारों ने स्वीकार किया है। डॉ. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव और तथा डॉ. गोपीनाथ शर्मा जैसे अनेक इतिहासकारों ने कहानी की बहुत सी बातों को अप्रामाणिक मानते हुए भी पद्मिनी के अस्तित्व को स्वीकारा है, जैसा कि ओझा के भी मत में व्यक्त हुआ है।
डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है छिताईचरित में जो जायसी से कई वर्षों पूर्व लिखा गया था, पद्मिनी तथा अलाउद्दीन के चित्तौड़ आक्रमण का वर्णन है। तो, जाहिर है, पद्मावती या पद्मिनी को काल्पनिक कहना निरी अज्ञानता ही है।
विरोध का कारण
‘पद्मावती’ फिल्म का विरोध इसलिए हो रहा है कि इसमें एक तो पद्मिनी को घूमर नृत्य करते दिखाया गया है, वहीं यह भ्रम या अफवाह या सत्य या अर्धसत्य कहीं से फैला है कि खिलजी और पद्मावती के संबंध में तथ्य तोड़-मरोड़कर पेश किए गए हैं। इसका खुलासा अब तक हो जाना चाहिए था क‍ि ह‍क‍ीकत क्‍या हैैै। क्‍यों आंदोलन फैलने द‍िया जा रहा है।
सियासत हो बंद
एक शेर है न…अपनी मर्जी से कहां अपने सफर पे हम हैं…रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं… की तर्ज पर सियासतदां हवा देखकर राजनीति कर रहे हैं। एक-एक करके एक वक्फे के बाद ऐसे बोल रहे हैं, मानो किसी का इशारे के बाद बोल रहे हैं। क्यों नहीं दोनों पक्षों को बैठाकर मामला शांत नहीं किया जाता।
बहरहाल, विरोध में गलत क्या है? समय रहते क्यों नहीं समाज और अन्य पक्षों यथा इतिहासकारों को फिल्म बता दी जाती और अस्वीकार्य दृश्य या गाने को हटा दिया जाता तो आज हिंदुस्तान नहीं उबलता। अब भी वक्त है, सियासतदानों को चाहिए कि वे सियासी दांवपेच से बाज आएं और समस्या को सुलझाने के प्रति गंभीरता दिखाएं। चाहे गुजरात चुनाव हो रहे हों। वर्ना अपने स्वाभिमान पर हमला चाहे छोटा हो या बड़ा, कोई भी सहन नहीं करेगा।
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