नेशनल टीम के लिए छोड़ी पढ़ाईखेल का जुनून इस तरह था कि जल्द ही इन्हें नेशनल टीम में शामिल कर लिया गया। इस वजह से इनकी पढ़ाई बीच में ही छुट गई। अभावों में जिस बालक ने ख्ेालना सीखा था आज वह खेल में इतना माहिर हो गया था कि दोनों पैरों से समान रूप से फुटबॉल को किक मार लेते थे। ख्ेाल की रफ्तार इतनी तेज थी कि जल्द ही फुटबॉल पर काबू पा लेते थे। इस तरह अपनी अद्भुत क्षमताओं से ये अब खेल में नए-नए कीर्तिमान बना रहे थे। नेशनल टीम में शामिल होने के बाद इन्होंने कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा।महज 17 साल में ही खेला विश्व कप1958 में ये 17 साल के ही हुए थे कि फुटबॉल विश्व कप के लिए ब्राजील की टीम में इन्हें भी शामिल किया गया। स्वीडन में खेले गए इस विश्वकप में छह गोल दाग कर ये सॉकर सुपरस्टार बन गए। सेमीफाइनल में ब्राजील ने फ्रांस को मात दी। फाइनल मैच ब्राजील और स्वीडन के बीच में हुआ, जिसमें इन्होंने दो गोल किए और विश्वकप की ट्रॉफी ब्राजील को मिली। यह मैच ब्राजील के लिए यादगार रहा। इस तरह कम उम्र में विश्व कप जीतने वाले खिलाड़ी बनें।[typography_font:14pt;” >इनका जन्म 1940 में ब्राजील में हुआ था। पिता फुटबॉल के खिलाड़ी थे लेकिन खेल में कोई खास उपलब्धियां नहीं थी। इसीलिए परिवार आर्थिक संकट से भी जुझ रहा था। बेटे के जन्म के बाद पिता का एक ही सपना था कि ये फुटबॉल की दुनिया चमका सितारा बने। इसलिए बचपन से ही इन्हें पिता ने ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया था। इस तरह इन्हें भी फुटबॉल से प्यार से हो गया। घर के खर्चों में मदद करने के लिए ये कभी चाय की दुकान पर काम करते तो कभी रेलवे स्टेशन पर लोगों के जूते चमकाकर कुछ पैसा कमा लेते। लेकिन पढ़ाई और काम के साथ ही पैशन को नहीं भूलते। घर के हालात ऐसे नहीं थे कि अच्छा फुटबॉल खरीद सके। इसलिए मोजे में अखबार डालकर उसे चारों और रस्सी और ग्रेपफू्रट की शाखाओं को बांधकर अपनी फुटबॉल बना लेते। अच्छे जूते लाने के लिए पैसे नहीं थे तो नंगे पैर ही फुटबॉल पर किक मारा करते थे। 11 साल की उम्र में बाऊस क्लब की ओर से खेलना शुरू किया। खेल में इनके शानदार प्रदर्शन को देखते हुए 16 साल की उम्र में सांतोस क्लब की ओर से खेलन का मौका मिला।फिर चला पड़ा जीत का सिलसिला1962 में चिली में फुटबॉल विश्वकप के दौरान ये चोटिल हो गए थे, इस वजह से फाइनल मैच नहीं खेल पाए लेकिन ब्राजील की टीम का प्रदर्शन शानदार था, इस तरह दूसरा विश्वकप भी लगातार ब्राजील ने ही जीता। 1966 का साल इनके लिए कठिन रहा। इस दौरान विश्वकप में पहले मैच के दौरान ब्राजील के खराब प्रदर्शन के चलते वह विश्वकप से बाहर हो गई। 1970 में मैक्सिको में हुए विश्वकप में इन्होंने ब्राजील की शानदार वापसी करवाई। इस टूर्नामेंट में इन्होंने चार गोल किए। ब्राजील ने फाइनल में इटली को 4-1 से हराया। 1974 में इन्होंने फुटबॉल से सन्यास लिया। इसके अगले साल इन्होंने वापसी की और नॉर्थ अमरीकन सॉकर लीग में न्यूयॉर्क कॉस्मॉस की ओर से खेलने लगे। इन्होंने 1977 में अपना आखिरी मैच खेला। ये व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि तीन बार वल्र्डकप का खिताब अपने देश के नाम करने वाले फुटबॉल के महान खिलाड़ी पेले है। इनका मूल नाम एडसन एरेंट्स डी नासिमेंटो है। फुटबॉल के 22 साल के कॅरियर में पेले ने 1363 मैच खेले और 1261 गोल किए। 1978 में इन्हें यूनिसेफ ने अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार से सम्मानित किया। पेले को फीफा ने 1999 में संयुक्त रूप से 20वीं सदी का महानतम फुटबॉल खिलाड़ी घोषित किया।