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सीखने में फिसड्डी तो नहीं बच्चा

locationजयपुरPublished: Dec 15, 2019 12:51:42 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

कम्पीटिशन के इस दौर में हर कोई अपने बच्चों को आगे रखना चाहता है। वह चाहता है कि उसका लाड़ला या लाड़ली अन्य बच्चों की तुलना में कहीं कमजोर न हो, पीछे न रहे। लेकिन दूसरी तरफ यह भी सच्चाई है कि कुछ बच्चे सीखने में काफी कमजोर होते हैं। आप जानिए कहीं आपका बच्चा भी लर्निंग डिसएबिलिटी का शिकार तो नहीं है?

सीखने में फिसड्डी तो नहीं बच्चा

सीखने में फिसड्डी तो नहीं बच्चा

पैरेंट्स इस समस्या को समझों तो सही
पैरेंट्स के लिए आसान नहीं होता बच्चे की लर्निंग डिसएबिलिटी को समझना। वे बढ़ते बच्चों पर इतना ध्यान ही नहीं दे पाते कि वे इसे सही से समझ सकें। इसे समझने के बाद यदि माता पिता समझदारी से काम लें तो काफी हद तक ऐसे बच्चों की समस्या को दूर किया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 30 फीसदी बच्चे कमोबेश इस समस्या से पीडि़त होते हैं। बच्चे द्वारा बार बार एक ही गलती दोहराए जाने पर पैरेंट्स इसे बच्चे की लापरवाही समझ लेते हैं और बेवजह बच्चे को डांटना शुरू कर देते हैं। वे ये नहीं समझ पाते कि उनका बच्चा लर्निंग डिसएबिलिटी का शिकार हो सकता है। चिकित्सकों के मुताबिक लर्निंग डिसएबिलिटी से ग्रस्त बच्चा आम बच्चों की तुलना में कुछ अलग होता है। ऐसे बच्चे अवसर मिलने पर भी अपनी क्षमता का बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते।
इसका पता कैसे लगाएं?
कुछ बातों का ध्यान रखकर और बच्चे की एक्टिविटीज पर गौर कर इस समस्या का पता लगाया जा सकता है। अगर बच्चे में निम्न लक्षण नजर आएं, तो समझ जाएं वह लर्निंग डिसएबिलिटी का शिकार है। अगर बच्चा देर से बोलना शुरू करे। साइड, शेप व कलर को पहचानने में गलती करे। बताए हुए निर्देशों को याद रखने में उसे परेशानी हो। वह उच्चारण में गलती करे, लिखने में गलती करे। गणित या संख्या से संबंधित नंबर न पहचान पाए। बटन लगाने या शू लेस बांधने में उसे परेशानी हो तो मान लीजिए कि बच्चा लर्निंग डिसएबिलिटी का शिकार है।
क्यों होती है यह समस्या
लर्निंग डिसएबिलिटी का एक प्रमुख कारण वंशानुगत भी है। माता पिता में से किसी एक को यह समस्या है तो बच्चों में भी इसके होने की आशंका होती है। इसके अलावा बच्चे के जन्म के समय सिर पर चोट लगने या घाव होने के कारण भी लर्निंग डिसएबिलिटी हो सकती है। मस्तिष्क या तंत्रिका तंत्र की संरचना में गडबड़ होने पर भी बच्चों में यह समस्या हो सकती है। इसी प्रकार जो बच्चे प्री मैच्योर पैदा होते हैं या जन्म के बाद जिनमें कुछ मेडिकल प्रॉब्लम होती है, ऐसे बच्चे भी लर्निंग डिसएबिलिटी का शिकार हो सकते हैं। इन कारणों पर गौर करना चाहिए।
समझदारी बताएं
लर्निंग डिसएबिलिटी से पीडि़त बच्चों के मामले में धैर्य और समझदारी की जरूरत होती है। पैरेंट्स को इस मामले में समझदारी और ध्यैर्य बरतना चाहिए। पैरेंट्स को ध्यान रखना चाहिए कि वे ऐसे बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों के साथ न करें। पेरेंन्ट्स, टीचर का तुलनात्मक व्यवहार ऐसे बच्चों में हीनभावना पैदा कर सकता है। ऐसे मामलों में माता पिता को चाहिए कि वे हालात को स्वीकार करें। ध्यान रखें कि बार बार डांटने से बच्चा आत्मविश्वास खो देता है और निराश हो जाता है। उन्हें डांटने के बजाय प्यार से पेश आएं। उन्हें महसूस न होने दें कि वे किसी बीमारी के शिकार हैं।
राय लेकर लें चिकित्सा
लर्निंग डिसएबिलिटी के शिकार बच्चों के इलाज के लिए पेडियाट्रिशियन, सायकियाट्रिस्ट, रेमिडियल एज्युकेटर, आकुपेशनल थेरेपिस्ट के विचार जानने जरूरी है। केवल एक की राय लेकर उपचार शुरू न करें। उपचार के दौरान स्पेशल एज्युकेटर से थेरेपी सीखें और फिर बच्चों के साथ वक्त बिताएं। ऐसे बच्चों को सरकार की तरफ से परीक्षाओं में विशेष छूट दी जाती है, जैसे परीक्षा में एक्सट्रा टाइम मिलना, एक्स्ट्रा राइटर मिलना, केलकुलेटर का इस्तेमाल, मौखिक परीक्षा देना आदि। ध्यान रखें इस छूट को पाना बच्चों का कानूनी अधिकार है।
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