scriptधोरों की धरती का हर किला कुछ कहता है, आपको भी पसंद हैं राजस्थान के दुर्ग, तो पढ़िए और देखिए ‘किस्सा किले का’ | Patrika Exclusive Stories of Forts in Rajasthan - Tale of Forts | Patrika News

धोरों की धरती का हर किला कुछ कहता है, आपको भी पसंद हैं राजस्थान के दुर्ग, तो पढ़िए और देखिए ‘किस्सा किले का’

locationजयपुरPublished: Apr 17, 2018 04:38:36 pm

Submitted by:

Nidhi Mishra

Patrika.com आपके लिए लाया है एक स्पेशल सीरिज किस्सा किले का… आइए जानते हैं राजस्थान की वीरता की कहानी कहते इन किलों के किस्से….

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मशहूर अंग्रेज इतिहासविद जेम्स टॉड वीरों की धरती राजस्थान के अतीत से बड़े गर्वित होते हुए कहते हैं, “राजस्थान की भूमि में ऐसा कोई फूल नहीं उगा जो राष्ट्रीय वीरता और त्याग की सुगन्ध से भरकर न झूमा हो। वायु का एक भी झोंका ऐसा नहीं उठा जिसके साथ युद्ध देवी के चरणों में साहसी युवकों का उत्थान न हुआ हो। आदर्श देशप्रेम, स्वातन्त्रय भावना, जातिगत स्वाभिमान, शरणागत वत्सलता, प्रतिज्ञा-पालन, टेक की रक्षा और और सर्व समर्पण इस भूमि की विशेषताएं रही हैं। यह एक ऐसी धरा है जिसका नाम लेते ही इतिहास आंखों के सामने चलचित्र की तरह चलने लगता है, भुजाएं फड़कने लगती हैं और खून उबलने लगता है। यहाँ का जर्रा-जर्रा देशप्रेम, वीरता और बलिदान की अखूट गाथा से ओतप्रोत अपने अतीत की गौरव-घटनाओं का जीता-जागता इतिहास है। इसकी माटी की ही यह विशेषता है कि यहाँ जो भी माई का लाल जन्म लेता है, प्राणों को हथेली पर ले लेता है और मस्तक की होड़ लगा देता है। यहाँ का हर बेटा अपनी आन पर अडिग रहता है। बान के लिए मर मिटता है और शान के लिए शहीद भी हो जाता है।”
इतिहस गवाह है कि राजस्थान की धरती हमेशा से वीरों को जन्म देने वाली रही है। अगर भारत का इतिहास लिखना है तो निश्चित रुप से इसी राज्य से शुरुआत करनी होगी। क्योंकि यहां का चप्पा-चप्पा शूरवीरों के शौर्य और रोमांचकारी घटनाचक्रों की कहानी कहता है। इस भूमि पर कई गढ़ और गढ़ैये ऐसे मिलेंगे जो अपने खण्डहरों से युद्धों के साक्षी बने और अब जीवन्त अध्याय के रूप में आने वालों को मौन दास्तां कहते सुनाई पड़ते हैं। यहाँ की जमीन का छोटे से छोटा टुकड़ा भी युद्धवीरों की पदचाप सुनाता है।

यहां के गढ़ों, हवेलियों और राजप्रासादों ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। यहां का हर राजा और सामन्त किले को अपनी प्रतिष्ठा कासूचक समझता था। ये किले निवास के लिये ही नहीं बल्कि जन-धन, सम्पत्ति की सुरक्षा, सामग्री के संग्रह और दुश्मन से खुद व अपनी प्रजा को बचाने के उद्देश्य से बनाए जाते थे।
हमारे देश में बोलियों के लिए कहा जाता है कि यहां हर बारह कोस पर बोली बदली हुई मिलती हैं – बारां कोसां बोली बदले… उसी तरह हर दस कोस पर गढ़ यानी किले मिलने की बात भी सुनी जाती है। राजपुताना में छोटा-बड़ा कोई गढ़-गढ़ैया ऐसा नहीं मिलेगा जिसने अपने आंगन में युद्ध की तलवार न तानी हो। खून की छोटी-मोटी होली न खेली हो और दुश्मनों के मस्तक को मैदानी जंग में न घुमाया हो। इन किलों का एक-एक पत्थर अपने में अनेकों दास्तान समेटे हुए है। उस दास्तान को सुनते ही रोम-रोम तीर-तलवार की भांति फड़क उठता है। इसी शौर्य और पराक्रम की गाथा कहने पत्रिका डॉट कॉम आपके लिए लाया है एक स्पेशल सीरिज किस्सा किले का… आइए जानते हैं राजस्थान की वीरता की कहानी कहते इन किलों के किस्से….
Watch Video: न कभी सुना न देखा होगा एेसा किस्सा किले का…


तो हो जाइए तैयार पत्रिका डॉट कॉम के साथ इतिहास के सफर पर चलने को… शुरुआत होगी राज्य की राजधानी में स्थित आमेर से। सप्ताह के हर मंगलवार और शुक्रवार को आप पढ़ और देख पाएंगे उस माटी के किलों की कहानी, जिसने अपने खून से इतिहास लिखा है। आगामी शुक्रवार यानी 20 अप्रेल को जानेंगे जयपुर की शान और विश्व की धरोहर आमेर किले का गौरवशाली इतिहास…

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