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पं. झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यानमाला: वर्तमान पत्रकारिता सत्ता को सूर्य नमस्कार कर रही है: राज कमल झा

locationजयपुरPublished: Jan 04, 2020 09:20:44 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

आजकल पत्रकारिता पर दिए जाने वाले व्याख्यान नैराश्य पैदा करते हैं। जब हम बात करते हैं कि कितने समाचार- पत्र और टीवी चैनल घुटनों पर आ गए हैं। जब उन्हें झुकने को कहा जाता है तो वे सूर्य नमस्कार करने लगते हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि सूर्य कहां है। और कौन सा सूर्य अस्त हो गया है और कौन सा सूर्य चमक रहा है।

पं. झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यानमाला: वर्तमान पत्रकारिता सत्ता को सूर्य नमस्कार कर रही है: राज कमल झा
जयपुर। आजकल पत्रकारिता पर दिए जाने वाले व्याख्यान नैराश्य पैदा करते हैं। जब हम बात करते हैं कि कितने समाचार- पत्र और टीवी चैनल घुटनों पर आ गए हैं। जब उन्हें झुकने को कहा जाता है तो वे सूर्य नमस्कार करने लगते हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि सूर्य कहां है। और कौन सा सूर्य अस्त हो गया है और कौन सा सूर्य चमक रहा है। न्यूज चैनल और समाचार-पत्रों के न्यूज रूम में विमर्श का स्थान बहुत कम रह गया है। सत्ता को सच बताने की बजाए वे इंतजार करते हैं कि सत्ता उन्हें बताए कि सच क्या है। उक्त विचार इंडियन एक्सप्रेस के चीफ एडिटर राज कमल झा ने व्यक्त किए।
राज कमल शनिवार को राजस्थान पत्रिका के झालाना स्थित कार्यालय के हॉल में 29वें पं. झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यान व सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर 2019 में श्रेष्ठ कविता व कहानी के लिए साहित्यकारों को सम्मानित किया।
राजनीतिक, प्रशासनिक, न्यायिक सहित अन्य क्षेत्रों के प्रमुख लोगों की मौजूदगी में उन्होंने कहा कि रात 9 बजे प्राइम टाइम पर मुद्दों का इतना शोर मचता है कि म्यूट बटन दबाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। मीडिया को दो भागों में रख सकते हैं, अस्तित्व बचाए रखने वाला और स्वतंत्र मीडिया। जब हम गौर से देखते हैं तो एक बड़ा विभेद है मीडिया में।
हम सब टीवी एंकर बन गए हैं
स्मार्टफोन के कारण हम सब टीवी एंकर बन गए हैं। ये लोकप्रियतावाद युग है। जब सरकारें बहुमत को ही लोकतंत्र का एकमात्र आधार मानती हैं। जनादेश की आड़ में सरकारें विरोध के स्वरों को सुनना भी नहीं चाहती हैं। संस्थाएं डांवाडोल हो रही हैं। कुछ संस्थाएं ही अपने वजूद को बचा पा रही हैं। इनमें मीडिया, न्यायपालिका और विश्वविद्यालय भी शामिल हैं।
सकारात्मक पत्रकारिता के बारे में बदल रही है घारणा
कहा जाता है कि पत्रकारिता को सकारात्मक होना चाहिए। लेकिन आज हालात ये हैं कि आम धारणा के मुताबिक पत्रकारों को लोगों ने खारिज कर दिया है। लोग सोचते हैं कि हम तटस्थ नहीं रह गए हैं। हम दूसरों के लिए तो मानक तैयार करते हैं लेकिन खुद के लिए नहीं करते। ये ठीक है कि लोगों की पत्रकारों के प्रति ये धारणा काफी हद तक सही हो सकती है लेकिन ये पूरी तरह से भी सही नहीं है।
हम जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट रहे
हालात काफी कुछ ऐसे हैं कि महान कवि कालिदास के शब्दों में हम जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट रहे हैं। हम रसूखदारों के साथ अपने संबंधों का बखान करने से नहीं थकते हैं। हम रिपोर्टर से पीआर बन गए हम एडिटर से एमएलए और एमपी बन गए। हममें से कुछ वामपंथ और दक्षिणपंथ के लिए बहुत अच्छी स्टोनोग्राफी कर लेते हैं। लेकिन मैं निराशावादी नहीं हूं। मुझे भविष्य से आशा है। मुझे लगता है कि आज अच्छी पत्रकारिता की सबसे ज्यादा जरूरत है।
एक ग्रे एरिया भी है
राज कमल ने कहा कि मीडिया पर दबाव रहता है पक्ष लेने का। किसी भी एक पक्ष के साथ दिखने का। यह चलन इन दिनों कुछ ज्यादा ही हो गया है जबकि पक्ष और विपक्ष के बीच हमने मध्य स्थान को नजरअंदाज का दिया है। ब्लेक और वाइट के बीच एक ग्रे एरिया भी होता है। इसकी ओर ध्यान ही नहीं दिया है।
मशाल जलाए हुए है पत्रिका
राज कमल ने पत्रिका की मिसाल देते हुए कहा कि पत्रिका ने पत्रकारिता के मूल्यों के साथ कोई समझौता नहीं किया है। हिंदी पत्रकारिता में यह साहस की बात है। उन्होंने कहा कि हिंदी के साथ अंग्रेजी मीडिया के न्यूज रूम में भी पत्रिका की खबरों को भरोसे का प्रतीक माना जाता है।

पत्रकारिता को बचाने का जिम्मा पत्रकार का है
कार्यक्रम के समापन अवसर पर डिप्टी एडीटर गोविंद चतुर्वेदी ने कहा कि आज सबकुछ दिया जा सकता है, लेकिन वक्त देना सबसे कठिन काम है। सभी लोगों की उपस्थिति से सालों से यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक चल रहा है। चतुर्वेदी ने इंडियन एक्सप्रेस के चीफ एडिटर राज कमल झा के व्याख्यान का उल्लेख करते हुए कहा कि आधे घंटे के छोटे से समय में जो कुछ कहा वह देश की मीडिया का सचित्र वर्णन है।
एडिटर से लेकर न्यूज रूम और रिपोर्टर तक की जो भी बात तकनीक और न्यूज को लेकर कहा उसको लेकर पत्रिका चल रहा है। जो भी बात आप दिल्ली में एक्सप्रेस के माध्यम से लेते हैं मीडिया आगे ले जाने और सिद्धांतों को बचाने के लिए रखते हैं उनके साथ पत्रिका और उसका हर रिपोर्टर खड़ा होगा। उन्होंने कहा कि मीडिया के सामने जो खतरे हैं, उनसे बचने का जिम्मा पत्रकार का ही है। उसको मजबूती से खड़े रहना होगा।
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