scriptपत्रिका टॉक शो: ‘मनुष्य के साथ कृषि और पशुओं में भी एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल हो सीमित’ | Patrika Talk Show In RUHS Medical College Antibiotic Awareness Week | Patrika News
जयपुर

पत्रिका टॉक शो: ‘मनुष्य के साथ कृषि और पशुओं में भी एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल हो सीमित’

वर्ल्‍ड एंटीबायोटिक अवेयरनेस वीक ( World Antimicrobial Awareness Week ) के तहत आरयूएचएस में हुआ आयोजन
विशेषज्ञों ने एंटीबायोटिक दवाओं की कार्यप्रणाली, अधिकता और न लेने के नुकसान आदि विषयों पर अपनी बात रखी। इस दौरान उन्होंने एंटीबायोटिक दवाओं से संबंधित विभिन्न सवालों के जवाब भी दिए।

जयपुरNov 24, 2022 / 08:49 pm

abdul bari

पत्रिका टॉक शो: 'मनुष्य के साथ कृषि और पशुओं में भी एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल हो सीमित'

पत्रिका टॉक शो: ‘मनुष्य के साथ कृषि और पशुओं में भी एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल हो सीमित’

जयपुर. जिस प्रकार एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल बहुत अधिक बढ़ रहा है, यदि ये इसी प्रकार चलता रहा तो भविष्य में एंटीबायोटिक दवाओं का हमारे शरीर पर कोई खास असर नहीं होगाा। रिसर्च बताती हैं कि कई बैक्टीरिया और वायरस समय के साथ एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर करते नजर आ रहे हैं। ये कहना है सीनियर डॉक्टरों का, जो बुधवार को आरयूएचएस में आयोजित पत्रिका टॉक शो में अपनी बात कह रह थे।
वर्ल्‍ड एंटीबायोटिक अवेयरनेस वीक ( World Antimicrobial Awareness Week ) के तहत आयोजित टॉक शो में विशेषज्ञों ने एंटीबायोटिक दवाओं की कार्यप्रणाली, अधिकता और न लेने के नुकसान आदि विषयों पर अपनी बात रखी। इस दौरान उन्होंने एंटीबायोटिक दवाओं से संबंधित विभिन्न सवालों के जवाब भी दिए। टॉक शो का संचालन पत्रिका के शैलेन्द्र शर्मा ने किया।

‘कृषि और पशुओं को दी जाने वाली एंटीबायोटिक को भी सीमित करने की जरूरत’

एसएमएस मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायोलॉजी की सीनियर प्रोफेसर डॉ रजनी शर्मा ने कहा कि मनुष्य के साथ-साथ कृषि और पशुओं को दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को भी सीमित करने की जरूरत है। क्योंकि इनके सेवन से भी हमारे शरीर में एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर हो रही हैं।
पत्रिका टॉक शो: 'मनुष्य के साथ कृषि और पशुओं में भी एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल हो सीमित'
‘हमारे देश में एंटीबायोटिक दवाएं सरलता से उपलब्ध’

आरयूएचएस के फार्माकोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. लोकेन्द्र शर्मा ने कहा कि हमारे देश में एंटीबायोटिक दवाएं सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं, ऐसे में काफी मरीज मनमर्जी से स्वंय का इलाज करने की कोशिश करते हैं और शरीर को कमजोर करने के साथ ही बीमारी को बढ़ा लेते हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में एंटीबायोटिक दवाएं डॉ. की सलाह पर ही खरीदी जा सकती हैं।
‘काफी चिंता का विषय है’

आरयूएचएस की प्रोफेसर डॉ. अलका बंसल ने एंटीबायोटिक दवओं की श्रेणियों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि वर्तमान में तीनों श्रेणियों की दवाओं के इस्तेमाल का औसत पूरी तरह गड़बड़ाया हुआ है। जो काफी चिंता का विषय है। सीनियर रेजीडेंट डॉ. नुपुर शर्मा ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं का अधिक इस्तेमाल हमारे शरीर को तो नुकसान पहुंचा ही रहा है, साथ ही ये आने वाली पीढ़ी के लिए भी बड़ी मुसीबत खड़ी कर रहा है।
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