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वंश, विरासत और सियासत

locationजयपुरPublished: Sep 12, 2017 11:03:00 pm

वंशवाद की राजनीति से कोई राजनीतिक दल अछूता नहीं। खालिस कार्यकर्ता को नेताओं ने अपना उत्तराधिकारी बनाया हो, ऐसे उदाहरण नहीं के बराबर हैं।
 
 

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– विशाल ‘सूर्यकांत’

इस देश में राजनीति और बॉलीवुड इस मायने में एक राह पर चल रहा है कि दोनों जगह नेपटिज्म और डायनेस्टी को लेकर कॉन्ट्रोवर्सी चल रही है। राजनीति में ये मुद्दा नया नहीं है लेकिन वंशवाद के मुद्दे पर बोतल में बंद जिन्न फिर निकल आया। वो भी अमेरिका से…। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों अमेरिका में है और अमेरिका में उसी अंदाज में मोदी सरकार की योजनाओं पर सवाल उठाए, जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने विदेशों में जाकर विरोधियों को कोसते रहे। अमेरिका में कैलीफोर्निया की एक यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी नोटबंदी पर बोले, जीएसटी पर बोले, साम्प्रदायिकता और धर्म के उन्माद की राजनीति पर बोले और वंशवाद पर भी बोले…
जब राहुल से पूछा गया कि आप पॉलिटिकल डायनेस्टी की विरासत पर राजनीतिक प्लेटफार्म पर खड़े है तो राहुल ने कहा कि हमारा देश ऐसे ही चलता है। चाहे अखिलेश यादव हो,धूमल परिवार हो,अंबानी,इन्फोसिस हो या फिर बॉलीवुड के अभिनेता अभिषेक बच्चन। भारतीय जनता पार्टी को एक बड़ा मौक़ा मिल गया क्योंकि गांधी परिवार पर राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद चलाने के आरोप भाजपा पहले भी लगाती रही है। अब खुद राहुल ने जब ये स्वीकार लिया तो बीजेपी ने इसे मुद्दा बना लिया। आज दिन भर की प्रतिक्रियाओं में बीजेपी बड़ी चतुराई से अपने खिलाफ उठाए गए मुद्दों को गौण कर गई और वंशवाद से जुड़े बयान पर फोकस कर लिया।

वंशवाद को लेकर क्या बोले राहुल गांधी और कांग्रेस,बीजेपी में कैसे इस मुद्दे पर गरमाई है सियासत…

वंशवाद की राजनीति से कोई राजनीतिक दल अछूता नहीं। चुनाव की आहट के साथ एक तो नेता रिटायर्ड होने को तैयार नहीं होते और अगर होते हैं तो परिवार या वंश से किसी को टिकट देने का सच्चा सौदा जरूर होता है। बहुत बिरले मौक़े होते हैं जब कोई स्थापित नेता अपने परिवार के अलावा किसी साथ चल रहे कार्यकर्ता को उत्तराधिकारी बना दे। .ये देश की राजनीतिक की तासीर है। लेकिन क्या विपक्ष,राहुल गांधी के जरिए इस सच्चाई से रूबरू नहीं होना चाहता ?
भारतीय राजनीति में वंशवाद की अमरबेल

2014 की लोकसभा में 28.6 फीसदी सदस्य वंशानुगत राजनीति से

8.6 फीसदी छात्र राजनीति से आए। 46.8 फीसदी ख़ास राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं

6.4 फीसदी बिजनेस या इण्डस्ट्रीज सेक्टर से आए
9.6 फीसदी अन्य क्षेत्रों से आए हैं।

दिलचस्प बात ये है कि 30 साल तक के जितने सांसद आए हैं वो 100 फीसदी वंशानुगत राजनीति से ही संसद पहुंचे हैं। जबकि 31 से 40 वर्ष के बीच की उम्र वालों में 65 फीसदी सदस्य वंशानुगत राजनीति से हैं। अगर पूरी तरह से परिवारवाद की देन वाले संसद सदस्यों की फेहरिस्त देखें तो देश में 27 सांसद ऐसे हैं जिनका अपना कोई निजी जनाधार नहीं था। परिवार की राजनीति बिरासत की बदौलत चुनाव जीते और संसद पहुंच गए। इसमें से भी 19 नेता कांग्रेस पार्टी से हैं। महिलाओं को राजनीति में आगे लाने की हकीकत ये हैं कि महिला सांसदों में से 70 फीसदी सांसद राजनीतिक परिवार की पृष्ठभूमि से है।
देश की राजनीति में घराना संस्कृति 

गांधी परिवार, यूपी में यादव परिवार, बिहार में लालू परिवार, बिहार में पासवान परिवार, पंजाब में बादल परिवार, महाराष्ट्र में ठाकरे और पवार परिवार, ओडीशा में पटनायक परिवार, हरियाणा में चौटाला परिवार, तमिलनाडु में करुणानिधि परिवार
दक्षिण एशिया और दुनिया में परिवारवाद का बोलबाला 

गांधी परिवार, भुट्टो परिवार, हसीना परिवार, भूटान में राजवंश, अमेरिका में बुश परिवार, ट्रंप परिवार में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते इवांका ट्रंप को अहम जिम्मेदारी

राहुल गांधी के अमेरिका भाषण पर नेताओं की तीखी बहस, पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक का नजरिया…

दरअसल, वंशानुगत राजनीति के ज्यादातर मामलों में क्षेत्रीय क्षत्रपों में वंश का बोलबाला है। करीब 15 राजनैतिक दल हैं जो राज्य स्तर पर ताकत रखते हैं। देश की 28 फीसदी राज्य सरकारें किसी न किसी राजनैतिक कुनबे के हाथो में हैं। इन कुनबों में कई नाम और भी हैं मसलन, आंध्र में एनटी रामाराव का कुनबा, तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव की बेटी सांसद है। मध्यप्रदेश का सिंधिया परिवार बीजेपी और कांग्रेस में बंटा है। राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस की प्रत्याशी मूल रूप से वंशानुगत राजनीति से हैं।
हालांकि कई चुनाव लड़कर वे राजनीतिक शख्सिसत बन चुकी हैं लेकिन बाबू जगजीवन राम की बेटी होने से शुरुआत आसान रही है। इसी तरह चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह के बाद अब उनके बेटे जयंत चौधरी मैदान में हैं। हरियाणा के मशहूर लाल देवीलाल,भजनलाल और बंसीलाल का राजनीतिक घराना वंशानुगत राजनीति की मिसाल रहा है।
क्या राहुल गांधी 2019 में देश के पीएम इन वेटिंग लिस्ट में हैं ? पहली बार राहुल ने स्वीकारा, मगर क्या है राजनीतिक प्रेक्षकों का नजरिया ?

दरअसल, देश की राजनीति में विपक्ष गांधी परिवार को घेरने के लिए वंशवाद का आरोप लगाता रहा है…अब तक कांग्रेस की ओर से बचाव ही किया गया है लेकिन राहुल गांधी ने इसे स्वीकार भी किया है। वंशवाद के समर्थक कहते हैं कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर ,वकील का बेटा वकील…टीचर का बेटा टीचर बन सकता है तो फिर नेता क्यों नहीं…। जो विरोधी है वो इसे लोकतंत्र का अपमान करार देते हैं। ये लंबी बहस है जिसे आपने पत्रिका प्राइम टाइम डिबेट में अब तक सुना। वंशवाद को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और खालिस कार्यकर्ता की भी जगह नहीं ली जा सकती।
देश की राजनीति में दोनों तरह के उदाहरण है। .भले ही कोई वंशवाद से आया हो या फिर कार्यकर्ता के संघर्ष पथ से। लेकिन चुनाव सबको लड़ना है और लंबा चलना है तो जीत कर भी आना है। देश की सियासी तासीर ये है कि सियासत में आने के रास्ते अनेक हो चलेगा लेकिन अच्छे नेताओं का आना ज्यादा जरूरी है। देश को चलाने की निर्णय क्षमता, व्यावहारिकता और आत्मनिर्भरता जरूरी शर्त है। फिर चाहे वो मोदी हो, राहुल गांधी हों या कोई और …
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