कई माह तक सरकार ने 50 प्रतिशत स्टाफ को घर से काम करने की छूट दी। राज्य में 8 लाख में से 3 लाख कर्मियों ने अलग-अलग अवधि में घरों से काम किया। इससे आवा-गमन सहित अन्य मदों से जुड़े खर्च में बचत हुई। अब विभिन्न कम्पनियां और खुद सरकार भी वर्क फ्राॅम होम को बढ़ावा दे रहे हैं। लोगों को भी काम की यह पद्धती रास आ रही है।
शादियों में खर्च की सीमा तय हो। कुछ लोग और समाज। ताकि जीवनभर की जमा-पूंजी दिखावे पर खर्च न हो। कन्वेंस खर्च कम करें। सरकार और लोग, दोनों मिलकर सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दें। वाहन शेयरिंग को अपनाएं। बदली परिस्थितियों के मुताबिक परिवार के हर सदस्य को स्वालंबी बनाएं। अब सेहत और भविष्य की बेहतरी पर ध्यान दें। सुरक्षित निवेश करें। जिस तरह कोरोना काल में शादियों आदि में कम खर्च होने से बचे पैसों से ज्यादातर लोगों ने बच्चों व परिवार की बेहतरी के लिए कदम उठाए।
बंदिशों ने घटा दिया शादियों का खर्च
25 हजार वैवाहिक समारोह हुए कोरोना काल में 30 से 40 प्रतिशत कम खर्च में हुई शादियां, कोरोना संबंधी बन्दिशों के चलते 200 करोड़ रुपए तक की बचत होने का अनुमान है 25 हजार शादियों के दौरान
560 करोड़ लीटर डीजल और 65 करोड़ लीटर पेट्रोल की खपत होती रही थी कोरोना काल से पहले राज्य में सालाना, जो वर्क फ्राॅम होम और बच्चों की आॅनलाइन पढ़ाई के चलते काफी घट गई, स्कूल टैक्सी-बस भी नहीं चलीं
कोरोना काल में संक्रमण और लाॅकडाउन के बीच खर्च घटे हैं। खास तौर पर आइटी सेक्टर और काॅरपोरेट पर नजर डालें तो इन सेक्टर में आॅफिस खर्च 7-8 प्रतिशत घटा है। जबकि उनके मुनाफे में 10 प्रतिशत तक बढ़ोतरी देखी गई है।
कोरोना काल में समाज के लिए कुछ अच्छी बातें भी सामने आई हैं, जिन्हें आगे बढ़ाने की जरुरत है। शादियों पर खर्च सीमित हो, इसके लिए अनुशासन की जरुरत है। व्यक्ति, समाज, संगठन और सरकार सब मिलकर खर्च पर लगाम कसें।